आदिवासियों का इतिहास | भारत पर आर्यों का आक्रमण history of Adivasi

history of Adivasi

∎ आदिवासी: विश्व भर में बसे अनुपम धरोहर

∎ आदिवासी कोण है?

आर्य सबसे पहले आदिवासी सिंधुघाटी की सभ्यता को नष्ट किया

History of Tribals आज से लगभग 4500 हजार वर्ष पहले भारत में आर्य आक्रमणकारियों का प्रवेश हुआ । उस समय भारत का शासक आदिवासी– द्रविड़ थे जो भिन्न भिन्न क्षेत्रों में बसे हुए थे । अफगानिस्तान , बंगाल , भूटान सभी भारत के अंग थे । आर्यों और यहाँ के मूलनिवासी अनार्य ( आदिवासी ) के शारीरिक संरचना में भिन्नता थी । आर्य का गोरा रंग लंबा कद भूरे कालेबाल , खुलासा दाढी – मुंछ दीर्घकपाल , लंबोतर चेहरा , लंबी नाक , सीधी आंखे और छोटे दांत थे । यहां के अनार्य काला रंग , घुंघराले बाल , चौड़ी और मोटी नाक , मंझोली दाढी – मूछ , मोटे होठ , बाहर निकला जबडा और नाटा कद था । आक्रमणकारी विदेशी युरेशिया , कालासागर के पास पामिर के पठारी से बोल्गा नदी के किनारे किनारे होते हुए ईरान के रास्ते सिंध नदी को पार कर भारत प्रवेश किया । आर्य सबसे पहले आदिवासी का महान सभ्यता सिंधुघाटी की सभ्यता को नष्ट किया । यह सभ्यता दूनिया की विकसित सभ्यताओं में एक थी ।आर्य पशुचारी और घुमक्कड़ थे , जिन्हें विकसित सभ्य असूर सभ्यता का वैभव पूर्ण जीवन कतई पसंद नही था । यही कारण है कि आर्यों ने आदिवासी सभ्यता का नाश किया ।

रक्षा करनेवाले  ही राक्षस क्यों कहलाये।

आर्यो का मुकाबला यहां के मूलनिवासी आदिवासी सम्राटों से हुई । आर्यो के मुख्य शत्रू भारत के प्राचीन निवासी अनार्य थे । आर्य उन्हें , दैत्य , दानव दस्यु , दास , असूर , राक्षस आदि नामों से पुकारते थे । ऋग्वेद में उन सभी को विभिन्न नामों से भी पुकारा गया है । विदेशी आर्य ही भारत के देव , देवता , सूर , विप्र आदि नामों से जाने गये । भारत के मूलनिवासी , अनार्य दैत्य , दास असूर , राक्षस ही वर्तमान में आदिवासी , अनुसूचित जाति एवं पिछडी जाति हैं । शास्त्रों , रामायण , महाभारत , पूराणों में राक्षस को लंबा दांत , जानवर की तरह सिंग , भयानक शक्ल वाला बतलाया गया है जो बिल्कुल गलत है । मानव से परे इस प्रकार की कोई नस्ल नहीं थी । अगर ऐसा होता तो पृथ्वी पर कहीं न कहीं इस प्रजाति का वंशज अवश्य मिलता । डायनासोर का जिवाश्म जो पांच लाख पूर्व का था खूदाई से निकल सकता है तो उसी प्रकार राक्षस असूर जिसे लंबा दांत और सिंध था , वह अवश्य मिलता । वास्तव में अपन लोगों की रक्षा करनेवाले रक्षक ही राक्षस कहलाये । आज भी असूर जाति के लोग झारखण्ड के लातेहार , पलामू , लोहरदग्गा और गुमला में है , जिनकी जनसंख्या 1991 के अनुसार 9122 है ।

आदिवासी  अनुसूचित जाति सभ्यता  संस्कृति कैसे खो दिया।

ऋग्वेद में असूरों के दूर्गों तथा पूरों को नष्ट करने के लिए निरन्तर देवताओं की स्तुतियाँ की गई है । ऋग्वेद में 2 लाख 66 हजार मूलनिवासी अनार्यो का कत्ल होने का प्रमाण है । अंत में इस संघर्ष में आर्यों की विजय हुई । आर्यो की छल कपट पूर्ण हमला रथ और उनके घोड़ों का प्रयोग तथा तीक्ष्ण धार वाले हथियार विजय के मुख्य कारण थे । बहुत से अनार्य ( आदिवासी ) दास बना लिये गये , बहुत से दक्षिण भारत चले गये और बहुत से अनार्य पहाडी , अथवा जंगलों में चले गये । दास बनाये गये अनार्य ( आदिवासी ) से आर्यो ने सेवा का काम लिया जैसे पालकी ढोने वाला कहार बाल दाढी बनाने वाला हजाम , साग – सब्जी उगानेवाला कोयरी कूर्मी , दुध – दही पहुंचाने वाला ग्वाला , लोहा कूटने वाला लोहार , इत्यादी अनेकों जातियों का निमार्ण कालांतर में हुआ जिसे आज पिछडी जाति ( ओ.बी.सी. ) कहते हैं । जंगल – पहाड में जो अनार्य अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए चले गये , उसमें से कुछ जंगली जानवरों की दंष एवं भूख प्यास को बर्दास्त नहीं कर सके , वे जंगल पहाड़ से निकलकर दुश्मनों ( आर्यों ) के सामने हथियार डाल दिये । आर्यो ने उसे ज्यादा खतरनाक समझकर गांवों के बाहर रखा और उनसे निष्कष्ट काम कराया । नाला साफ जिसने किया कालांतर में डोम – मेस्तर , मरे हुए जानवरों को चमरा उधेडने वाला चर्मकार या चमार और कपड़ा धोने वाला धोबी कहलाया । इन लोगों को आर्यो ने अछूत घोषित किया । आज ये अनुसूचित जाति हैं । जो जंगल पहाड में रह गये दुश्मनों की गुलामी स्वीकार नहीं किया उसे आज अनूसूचित जन जाति या आदिवासी कहते है । आदिवासियों के प्रथम पूर्वजों ने जंगल के फल फुलों , कन्द – मूलों , जंगली जानवरों तथा नदी नालाओं की मछली को खा कर जीवन यापन किया । ये आदिवासी आर्यों के सम्पर्क में नही रहें इसलिए वह अपनी सभ्यता संस्कृति को बचाये रखा । पिछडा वर्ग एवं अनुसूचित जाति आर्यो के सम्पर्क में रही और गुलामी किया इसलिए अपनी सभ्यता  संस्कृति खो दिया । आर्यो ने यज्ञ हवन किया , तो अछूतों एवं पिछड़ा वर्ग को भी साफ – सफाई में लगाया । इस प्रकार होली , दशहरा में देवी – देवताओं कह पूजन का नकल में ये गुलाम करने लगे । कभी ये आदिवासी ( अछूत और सछूत ) जंगलों पहाड में रहने वाले आदिवासी के तरह ही प्रकृति पूजक थे , इनका अपना प्रकृतिक धर्म जैसे  सरना  इत्यादि था और अभी भी सरना धर्म लोकप्रिय है । इस प्रकार प्रमाणित होता है कि पिछडा वर्ग , अनुसूचित जाति , आदिवासी तीनों भाई थे जो दुश्मनों के हमलों के कारण बिछड गये , और अपना सभ्यता संस्कृति , राज – पाट खो कर गुलाम बन गये ।आदिवासी अपनी भाषा संस्कृत परम्परा को संजोये हुए हैं ।

गोंडी पुनेम ध्वज दर्शन

भारत के संविधान ५वी और ६ अनुसूची

यंहा सभ है

विदेशी आर्य कोण है

लेकिन दुःख इस बात की है कि आदिवासी भी अब आर्यो एवं उनके गुलामों के सम्पर्क में आकर अपनी प्रकृति परम्परा , संस्कृति छोड रहें हैं । ये भी हिन्दूओं की तरह , पूजा – पाठ , मूर्ति पूजन एवं होली दशहरा मनाने लगे हैं । आर्य विदेष से आक्रमणकारी के रूप में आये , और यहां के मूलनिवासी को गुलाम बनाया , इसका अनेकों ऐतिहासिक प्रमाण है । विदेशी आर्य ही आज के दिन में ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैष्य है और आदिवासी , अनुसूचित जाति एवं पिछड़ी जाति ही यहां के मूल निवासी हैं , अब तो वैज्ञानिक रूप से भी प्रमाणित हो गये है ।

वर्तमान स्थिति 

1 ) आज पूरे देश मे 83 करोड़ लोगों को मात्र 10 रूपये से 20 रूपये ही आमदनी है । यानी भूखमरी के कगार पर है । उनमें सबसे ज्यादा भूखमरी के शिकार आदिवासी लोग है ।

2 ) छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट और संताल परगना टेनेन्सी एक्ट के तहत् आदिवासी का जमीन बेचा – बेची , दान करके । अदला – बदली करने का कोई प्रावधान नहीं है । फिर भी उनकी जमीन तेजी से गैर आदिवासी के साथ बिक रहे है । और उस पर बड़े – बड़े अपार्टमेंट बन रहे है ।

3 ) भारत देश से आदिवासी मजदूरों का तस्करी कर , मलेशिया , वर्मा , ईराक , अफगानिस्तान , सिंगापुर , आदि देशों में भेजा गया । सन् 1916 -17 में 11000 संताल आदिवासी श्रमिकों को मेसोपोटामिया ( इराक ) एवं 1493 श्रमिकों को दूर संचार विभाग के लिए आकायाव ( वर्मा ) भेजा गया । बंगाल गजेटियर के अनुसार 10 लाख संथाल असम के चाय बगानों एवं अंडमान निकोबार द्वीप समूह में चले गये । असम में स्थायी निवासी हो जाने के कारण जब वे नागरिकता की मांग की तो दो साल पूर्व बेरहमी से पीट – पीट कर हत्या की गई । आदिवासी युवती को सरेआम सडक पर नंगा कर दौडाया गया । दिनांक 31 अक्टूबर को तो असम में 400 आदिवासी घरों को फूंक दिया गया ।

सरकारी रिपोर्ट 2009 के अनुसार अनुसूचित जाति

4) संविधान में अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत नौकरी में आरक्षण रहने के बावजूद अब तक 4.3 प्रतिशत ही कोटा भरा गया है । 25 वर्ष नौकरी करने के बाद भी उन्हें प्रोन्नति नहीं दी जा रही है । दूसरी ओर उनसे कनीय पदाधिकारी जो सामान्य वर्ग के है , प्रोन्नति दे दी गई है।

सरकारी रिपोर्ट 2009 के अनुसार अनुसूचित जाति 15 प्रतिशत में 11.9 प्रतिशत , आदिवासी 7.5 प्रतिशत में 4.3 प्रतिशत एवं पिछडा वर्ग 52 प्रतिशत में 4.7 प्रतिशत नौकरी में है ।

अकेली उंची जाति जो 15 प्रतिशत के लगभग है वे नौकरी में 79 प्रतिशत है ।

आदिवासी ये समझते है कि मेरा हिस्सा एस.सी. , ओ.बी.सी. ने खा लिया । अगर ऐसा होता तो एस.सी. का कोटा 11.9 प्रतिशत और ओ.बी.सी. का कोटा 4.7 प्रतिशत नहीं रहता । यहां तो तीनों का हिस्सा अकेले उच्च वर्ग खाकर 15 प्रतिशत के जगह 79 प्रतिशत नौकरी ले लिया । डॉ . बाबासाहब आंबेडकरजी को संविधान लिखने का मौका मिला तो उस समय कोई आदिवासी नेता नहीं थे । उन्होंने जनसंख्या के आधार पर नौकरी में संविधान के अनुच्छेद 15 ( 4 ) एवं 16 ( 4 ) द्वारा एस.सी. को 15 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया तो आदिवासी को भी जनसंख्या के आधार पर 7.5 प्रतिशत आरक्षण दिया । यहां तक की आदिवासी के लिए विशेष सुविधा पांचवी अनुसूचित का प्रावधान किया । जमीन क्रय – विक्रय पर कानूनी रोक लगाई । एम . पी . एवं एम.एल.ए. बनने में भी संविधान के अनुच्छेद 330 एवं 332 द्वारा आरक्षण का प्रावधान किया । अगर डॉ . बाबासाहब आंबेडकरजी नहीं रहते तो आज History of Tribals आदिवासी का न कोई कर्मचारी पदाधिकारी रहते , न कोई एम.पी. और एम.एल.ए. दिखाई देते । दुश्मन सारी की सारी जमीन हडपकर उन्हें यहां से विलुप्त कर देते । यह गंभीरता से अनुसूचित जन जाति के लोगों को डॉ . बाबासाहब आंबेडकर के एहसान को समझने की जरूरत है ।

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