गोंडवाना लैण्ड में पायी जाने वाली जड़ी - बूटियों का उपयोग


Use of herbs found in Gondwana land

 Use of herbs found in Gondwana land

(1) जंगली हल्दी -

खांसी में हल्दी को भुनकर उसका चूर्ण एक दो मात्रा , मधु या घी के साथ चटाने से आराम होता है ।

(2)कस्तूरी भिंडी - हृदय रोगियों के लिये यह वरदान साबित हो रहा है ।

(3)हडजोड़ - अस्थिमग्र में हडजोड़ में घी को पकाकर सेवन करने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है ।

(4)अपामार्ग - सर्प विष बिच्छु पागल कुत्ते , चूहे के काटने में इसे मूल जल में पीसकर पिलाते हैं व पंचांग मूल या बीज को पानी में पीसकर इसका लेप करने पर लाभ होता है ।

(5)कालमेघ - अम्लपित्त में इसका क्वाथ मधु के साथ सेवन से लाभ होता है ।

(6)रातावर- रक्तविकार में शातावर का ताजा चूर्ण बकरी के दूध में सेवन किया जाता है ।

(7))चक्रमर्द - दाद , खुजली एवं छाजन में इसके बीजों को मूली के पत्तों के साथ पीसकर या नींबू के रस के साथ या कटंज के तेल के साथ पीसकर शरीर के प्रभावित हिस्से में लगाने से लाभ होता है ।

(8)सफेद मसली - शरीर की कमजोरी को दूर करने इसके मूल को चूर्ण कर उपयोग किया जाता है ।

(9)नींबू घास- विभिन्न औषधि निर्माण में उच्चकोटी के इत्र निर्माण , विभिन्न सौन्दर्य नींबू की ताजगी वाले साबूनों का मुख्य घटक यही है ।

(10)केंवाच - इसके मूल से सिद्ध किया दूध अतिसार से पीड़ित रोगी के लिये लाभकारी है ।

(11)तुलसी - पत्तों का रस कर्ण शूल में 1 से 2 बूंद डालने से लाभ होता है ।

(12)लेंडी पीपल- कृमि में पिपली मूल का चूर्ण बकरी के दूध के साथ पिलाने से कृमि बाहर निकल आती है ।

(13) शरपुखा- उदरशुल में इसके मूल की ताजा छाल काली मिर्च के साथ पीसकर शोली बनाकर सेवन किया जाता है ।

(14) गिलोय - विषम ज्वर तथा शीत जीर्ण ज्वर में इसका क्वाथ तथा इसमें घीरी पीपल एवं मधु मिलाकर देने से लाभ होता है । कफ , प्लीहा , कृषि एवं अरूचि दूर हाती है ।

(15)अश्वगंधा - बारिक चूर्ण आंवला के रस के साथ 10 ग्राम रोज लें और प्रतिदिन 6 माशा बढ़ाते जायें तो बुढ़ापा नहीं आता ।

(16) रतनजोत- अजीर्ण , अतिसार तथा उदरशूल में इनकी 3 से 5 से.मी. लम्बी ताजी जड़ 6 दाने काली मिर्च थोड़ी हींग के साथ पीसकर रस मट्टे के पिलाते हैं ।

(17)कलिहारी- खाज - खुजली में इसके कंद को पीसकर इसका 4-5 दिन लगाने से लाभ होता है ।

(18) धतूरा- पागल कुत्ता के काटने पर श्वेत पुनर्वता का चूर्ण 1/2 तोला तथा धतूरा मूल का चूर्ण एक तोला दोनों को मिलाकर शीतल जल के साथ सेवन किया जाता है ।

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