आदिवासीयों की महत्त्वपूर्ण जानकारी/५ और६ अनुसूची ( page no-01)

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आदिवासीयों की महत्त्वपूर्ण जानकारी/५ और६ अनुसूची ( page no-01)

आदिवासीयों की महत्त्वपूर्ण जानकारी/५ और६ अनुसूची. 

डॉ . बाबासाहब आबेडकरजी को सविधान लिखने का मौका मिला तो उस समय कोई आदिवासी नेता नहीं थे । उन्होंने जनसंख्या के आधार पर नौकरी में सविधान के अनुच्छेद 15 ( 4 ) एवं 16 ( 4 ) द्वारा एस . सी . को 15 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया तो आदिवासी को भी जनसंख्या के आधार पर 7.5 प्रतिशत आरक्षण दिया । यहां तक की आदिवासी के लिए विशेष सुविधा पाचवी अनुसूचित का प्रावधान किया । जमीन क्रय - विक्रय पर कानूनी रोक लगाई । एम.पी. एवं एम एल.ए. बनने में भी संविधान के अनुच्छेद 330 एवं 332 द्वारा आरक्षण का प्रावधान किया । अगर डॉ . बाबासाहब आबेडकरजी नहीं रहते तो आज आदिवासी कान कोई कर्मचारी पदाधिकारी रहते , न कोई एम.पी. और एम.एल.ए. दिखाई देते । दुश्मन सारी की सारी जमीन हडपकर उन्हें यहा से विलुप्त कर देते । यह गंभीरता से अनुसूचित जन जाति के लोगों को डॉ . बाबासाहब आबेडकर के एहसान को समझने की जरूरत है । सन् 2001 की जनगणना के अनुसार आदिवासियों की करोड 44 लाख आबादी है । इसमें से लगभग ढाई करोड लोगों को विस्थापित कर दिया गया है । संविधान की पांचवी अनुसूचि इसलिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस देश की साढे आठ करोड जनता में से 7 करोड आदिवासी पाचवी अनुसूचि के क्षेत्र में निवास करते हैं तथा एक करोड लोग छठवीं अनुसूचित के क्षेत्र में रहते हैं । संविधान की धारा 330 और 332 धारा के तहत अनुसूचित जाति , जनजाति के लोगों के लिए राजनैतिक आरक्षण का प्रावधान किया गया है । धारा 330 के तहत लोकसभा की अनुसूचित जाति के लिए 77 सीटें रिजर्व हैं । और अनुसूचित जनजाति के लिए 42 सीट रिजर्व है । तथा धारा 332 के तहत विधानसभा में अनुसूचित जाति को जहाँ 600 सीट रिजर्व है वहीं अनुसूचित जनजाति के लगभग 400 450 विधायक सार देश भर में विधानसभा में चुनकर जाते हैं । डॉ बाबासाहब आबेडकर ने शेड्यूल्ड कास्ट और ओबीसीज को केवल शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण दिया लेकिन आदिवासियों का शिक्षा और नौकरिया में आरक्षण के साथ - साथ दो महत्त्वपूर्ण अधिकार दिये , कौन से दो महत्वपूर्ण अधिकार दिये ? That is called Right of Self Governance & Right of Ownership . क्या Self governance का अधिकार ? स्वय शासक का अधिकार और मालकी हक्क का अधिकार हिंदी में उसका आदिवासी की जमीन गैर - आदिवासी को नहीं देना चाहिए ये मालकीयत का अधिकार , आदिवासी की जमीन में अगर कोई मिनरल है , माइन्स है , खदान है , अगर उसको भी गवर्नमेंट को किसी को देना है तो बगैर आदिवासी के पचायत के , बगैर आदिवासी की ग्राम सभा के परमिशन के , बगैर वो मायनिंग का परमिशन किसी भी नॉन - आदिवासी को नहीं दिया जा सकता । ये भी मालकी हक का अधिकार है । और स्वयंशासन का क्या अधिकार है ? स्वयंशासन का अधिकार है की हमारा कल्चर कैसे होना चाहिए । आपस में अगर कम्युनिटी में डिसपूट होता है , ट्राइब - ट्राइब में तो उसके लिए हायकोर्ट में जाने की जरूरत नहीं । Directly Session Court में जाने की जरूरत नहीं , ट्राइबल पंचायत ' उसको सुलझा सकती है । अपने लेवल पर , अगर वो नहीं सुलझेगा डिसपूट आगे की कोर्ट में जायेगा । ये अधिकार कस्टम का । बजेट के अलोकेशन में , जो टाइब्ज का प्लैन आता है उसका खचा कौन से कामों के लिए होना चाहिए । ये सारे निर्णय लेने के स्वयशासन के अधिकार डॉ बाबासाहब आबेडकर ने पाचवे शेड्यूल में आदिवासियों को दिये । मालकी हक्क का अधिकार छटवें सूची में इससे आगे आता है । कैसे आगे आता है ? छटवें सूची में ये और आगे जाता है । छटवे सूची में मान लीजिये अगर गर्वमेंट को आदिवासियों के जमीन से अगर सोना निकालना हो , मान लीजिये अगर आपको युरेनियम निकालना हो तो छटवीसूची क्या कहती हैं ? छटवी सूची ये कहती है की , गवर्नमेंट भी वो मिनरल्स नहीं निकाल सकती और उसको वो मिनरल्स निकालना है , वो खनिज संपदा को निकालना पर शेड्यूल्ड एरियॉज है वहाँ पर , ग्रामसभा को अधिकार दिया । वहाँ पर ओनरशिप ( मालकीयत ) है आदिवासियों की । छठवीं सूची में कोई मार्केट की कंपनी आकर सामान बेच सकती है या नहीं यह वहाँ की ' डिस्ट्रीक्ट एडव्हायजरी कमेटी ' डिसाइड कर सकती है । वह चाहे तो उसपर टैक्स भी लगा सकती है । मायनर और मिनरल प्रोड्युस्ड अगर है । मायनर , मिनरल प्रोड्युस्ड यानि जो स्टॅटेजिक मिनरल्स नहीं है । जैसे युरेनियम , प्लोटोनियम , आयर्न , बाक्साइड , टंगस्टन आदि स्टॅस्टेजिक मिनरल्स हो है । उसको छोड़कर जो बाकी खनिज संपत्ति होती है उसपर आदिवासियों का अधिकार हैं वहाँ आदिवासियों के को - ऑपरिटिव्हज को ही उसका प्राफिट मिलना चाहिए और सुप्रिम कोर्ट ने 1997 में डायरेक्शन भी दिया । समन्ता वर्सेस आध्रप्रदेश एण्ड अदर्स 1997 , के सुप्रीम कोर्ट के डिसीजन में स्पष्ट रूप से वहाँ के आदिवासियों के जमीन में जो खनिज संपदा है वह खनिज संपदा पर आदिवासियों की मालकीयत है । ऐसा निर्णय दिया क्योंकि आदिवासी की जमिन गैर आदिवासी को नहीं दी जा सकती , वह सरकार को भी अगर लेना है । पहला राइटस् जो है उसका , ट्रायबल का , उसके ऊपर और इसलिये उसका प्राफिट जो है वह आदिवासी को मिलना चाहिए । ओ बात को सुप्रीम कोर्ट ने माना 1997 में ।




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