कोया वंशीय गोंड समुदाय के गण्डजीवों के पुनेमी तीज तिहारों की पुरी जाणकारी दिया गया है

कोया वंशीय गोंड समुदाय के गण्डजीवों के पुनेमी तीज तिहारों की पुरी जाणकारी दिया गया है

गोंडी पुनेमियों के तीज तिहार

📗कोया वंशीय गोंड समुदाय के गण्डजीवों के पुनेमी तीज तिहारों को पार्श्वभूमी में उनके पूर्वजों के ऐतिहासिक घटनाओं और पुनेमी नीतिमुल्यों का पौराणिक आधार है । उनके समुदाय में प्रचलित कथासारों एवं किवदन्तियों का सही मर्ग का अध्ययन ही गोंडी पुनेमी दर्शन के मूल्यों का अध्ययन है । जिन्हें हम मिथक या किवदन्तिया जनश्रुति कहते है , वे उनके पेन सादृश्य पूर्वजों की प्राचीन ऐतिहासिक गाथाएं हैं । वे वंश परंपरागत रूप से मूहजबानी प्रचलित है । प्राचीन किवदन्तियों का आधार किसी भी राष्ट्र , समाज तथा धर्म को होना अनिवार्य होता है , क्योंकि उसके बिना किसी भी सभ्यता तथा संस्कृति के दार्शनिक विचारों तथा आचरों को कोई मूल्य प्राप्त नहीं होता ।

आर्यवर्त के परिक्षेत्र में संशोधन आरंभ किया

गोंडी पुनेमी गण्डजीवों की सभ्यता का कोई लिखित गाथा नहीं है फिर भी उनके पूर्वजों के पुनेमी तथा सामुदायिक नीतिमूल्यों के बारे में उनके दिलों दिमाग में अटूट श्रद्धा है , जो उनके पुनेमी तीज विहारों के माध्यम से आज भी विद्यमान है , और उसी माध्यम से वे अपनी नई पीढी में संक्रमित करते हैं । इस संस्कृति के पार्श्व में जाकर उसका प्राचीन इतिहास संशोधित करना अनिवार्य है । जैसे ग्रीकों के किवदन्तियों में ट्राय नगरी के विनाश का वर्णन है , उस पर से ट्राय नगर जरूर अस्तित्व में रहा होगा , ऐसा अनुमान लगाकर उत्खनन किया गया और ट्राय नगर के अस्तित्व का पता चला । उसी तरह आर्यों के राजा इंद्र ने कुयवा असुरों के नगरों को जलाकर ध्वस्त किया , जिनका नाम ऋगवेद में मुर्विदुयोण और हरयुपिया ऐसा उल्लेख है । इसी आधार पर डॉ मार्शल ने आर्यवर्त के परिक्षेत्र में संशोधन आरंभ किया । उस परिक्षेत्र का उत्खनन करने पर मोहन जो दड़ो और हड़णा इन नगरों के पुरावशेषों को खोज निकाला गया !

कोया वंशीय गोंड सगा समुदाय के गण्डजीव

उसी तरह कुयवा असूर याने कोया वंशीय गोंड सगा समुदाय के गण्डजीव होना चाहिए,ऐसा अनुमान लगाकर मोहन जो दड़ो और हड़पा के उत्खनन से प्राप्त मुहरों में सिंधु लिपि में अकित पाठों को गोंडी भाषा में पढ़ने का प्रयास करणे पर उस लिपि में अंकित पाठों को लेखक द्वारा अर्थपूर्ण ढंग से सैधवी लिपि का गोंडी में उदवाचन ग्रथ में पढ़ा गया है । ठीक इसीतरह गोंडी पुनेमी गोंड सगा समुदाय के किवदन्तियों एवं जनश्रशतीयों के आधार पर उनकी प्राचीन सभ्यता के ऐतिहासिक मूल्यों को खोज निकाला जा सकता है । कोया वंशीय गोंड समूदाय के गण्डजीव अनेक तीज तिहारों को मानते है , जिन्हें पण्डुम कहा जाता है कछ महत्त्वपूर्ण पण्डुमों ( विहारों ) की सूचि निम्म प्रकार है ।


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गोंडी तिहारों पण्डुमों के नाम

-तिहारों पण्डुमों - तिथि

१ ) सयमुठोली पण्डुग ( पाच पावली ) -माघ पूर्णिमा

२ ) संभू नरका पण्डुम ( शिव जागरण ) -माघ अमावश के दो दिन पूर्व

३ ) शिमगा पण्डुग ( होली या शिवमगवरा ) - फाग पूर्णिमा

४ ) खडेरा पण्दुम ( मेघनाथ पूजा ) -फाग पूर्णिमा पाडवा

5 ) रावणमूरी पण्डुम ( रावण पूजा ) -फाग पूर्णिमा पंचगी

६ ) माण्ड अम्मास पण्डुम -फाग अमावश

७ ) भिमालपेन पूजा -चैत्र पूर्णिमा

८ ) माता दाई पूजा -चैत्र पूर्णिमा पंचमी

९ ) नलेंज पूजा -चैत अमावश

१० ) इरूक पूनो तिंदाना पण्डुम -वैशाख पंचमी

११ ) फड़ापेन पूजा ( परसापेन ) -वैशाख पूर्णिमा

१२ ) संजोरी बिदरी पण्डुम -ज्येष्ठ पूर्णिमा

१३ ) हरियोमास पण्डुम -ज्येष्ठ अमावश

१४ ) खूट पूजा ( आखाड़ी ) -आषाढ़ पूर्णिमा

१५ ) सगापेन पूजा ( जीवती ) -आषाढ़ अमावश

२६ ) नांगपूजा ( अही पंचमी ) -श्रावण पंचमी

१७ ) सैला पूजा पण्डुम ( नृत्य पण्डुम ) -श्रावण पूर्णिमा

१८ ) पोरा बड़गा ( पोला ) -श्रावण अमावश

१ ९ ) दाना पूनो तिंदाना ( नया खाना ) -भादो पूर्णिमा पंचमी

२० ) नरुंग दाई पूजा -अश्विन दशमि

२१ ) जंगो लिंगो लाटी पूजा -कार्तिक पंचमी

२२ ) नार पूजा -कार्तिक पूर्णिमा

२३ ) काली कंकाली दाई पूजा -पौष अमावश

24} हिरासुका भुमकाल पूजा

25} माड़ आम्मास यह वर्ष का अंतिम दिन

Note ; हमरी कोशिशराहती है की आप तक गोंडी संस्कृती की वास्तविक जाणकारी पहुंचे, यह जाणकारी गोंडी पुणेम पुस्तक से लिया गया है ! अध्याय 16 वा

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