कुपार लिंगो का जन्म
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📘 प्राचीन काल में दाई कली ककाली के मंडून्द कोट बच्चों से परेशान होकर संभू - गवरा
ने मिलकर उन्हें कोयली कचाड़ लोहगढ़ पर्वत की गुफा में बारह वर्ष की कैद सुनाकर बंद कर दिया था । उन्हें उचित मार्ग दर्शन करने हेतु एक महान बौध्दिक ज्ञानी पुरुष की आवश्यकता महशूस कर संभू - गवरा ने पारी पटोर बिजली पूरा के निवासी जालका दाऊ और उसकी पत्नी हीरोदाई से उनका पुत्र रूपोलग को दान में लिया । इस बारे में ऐसा बताया गया कि जालका दाऊ और हीरोदाई दोनों संभू - गवरा के महान सेवक थे । एक दिन संभू - गवरा जालका दाऊ के द्वार पर गए और उससे मिन्नत किए ,हे जालका दाऊ तुम बहुत गरीब हो ,जिसकी वजह से तुम अपने पुत्र का परवरिश उचित ढंग से नहीं कर पाओगे ,हम तुम्हारे पुत्र को गुणी और ज्ञानी बनाना चाहते हैं , इसलिए तुम अपने रुषोलंग पुत्र को हमें दान में प्रदान करो ।संभू - गवरा पर उनका पूर्ण विश्वास था , इसलिए उन्होंने अपने पुत्र को सभू की गोद में दे दिया , जिसे संभू शेकने पुलशीव राजा के उद्यान एक तोया वृक्षं के नीचे ले जाकर रख दिया और अपने गले का हार अर्थात् भूजंग को उसकी रक्षा के लिए नियुक्त कर दिया ।
2.तीसरी कथा बैतुल छिदवाड़ा तथा नरसिंहपूर
तीसरी कथा बैतुल छिदवाड़ा तथा नरसिंहपूर जिलों का जो परिक्षेत्र है , वा रहनेवाले गोंड समुदाय के लोगों में प्रचलित है । राजा पुलशीव और होर्बा माता के वैवाहिक जीवन के पाच वर्ष गुजर जाने पर भी उन्हें कोई सन्तान नहीं हुआ था । दोनों बहुत्त दुखी एव चिंतित थे । एक दिन रात्रि के समय हो | माता को गहरी नींद में एक सपना दिखाई दिया । सपने में एक महासा बालक आयाऔर होर्चा माता से कहने लगा , हे माताजी । मैं तुम्हारी कोख में समा जाना चाहता हूँ मुझे जगह दीजिए । उस नन्हासा बालक को देखकर ही | माताजी ने उसे अपनी गोद में ले लिया । ठीक उसी समय राज महल के दरबान द्वारा प्रात काल की शुभ सूचना घटा बजाकर दी गई । हीर्बा माताजी का सपना मा हो गया । वह उठकर अपने बिस्तर के इर्दगिर्द सपने में आए बालक को तलासने लगी । यह देखकर राजा पुलशीव को कुछ अजीब सा लगा । उसने ही | माताजी से पूछताछ की । राजा द्वारा सवाल करने पर होर्बा माता का होस ठिकाने आया माताने सपने में आए बालक की कथा राजा को कह सुनाया । तब राजा ने कहा , हे रानी । यदि फड़ापेन की कृपा बनी रही तो हमें अवश्य पुत्र कल भाषा होगा । क्योंकि प्रात काल के समय दिखाई देनेवाला सपना कभी झूठा साबित नहीं होता । फड़ापेन की कृपा से हीा माता को छटे वर्ष के दौरान गर्भधारणा हुई । एक सुयोग्य पुत्र प्राप्त हो जिसमें संपूर्ण कोया वशीय गण्डजीवों की सेवा करने की चाहत एव समता हो , ऐसी मनोकामना लेकर वह प्रतिदिन कड़ापेन शक्ति को उपासना करने लगी । एक दिन उसे उबर के फल खाने की इच्छा हुई । वह धूपकाले का समय था । धूपकाले में तोया वृक्ष को बहुत फल होते हैं । वह अपने राजमहल के उद्यान में जहा पर तोया पेड़ था वहा अपने मिट्ठू को सात लेकर गई । वह कोया वशीय गण्डजीवों की बोली भाषा जानता था । ही ; माताने मिटठू को पके हुए तोया फल अपनी चोंच से काट गिराने को कहा । आज्ञा पाकर मिट्ठू पेड़ पर जा बैठा तथा पके हुए तोया फल एक एक कर काट मिराना आरम किया । बड़े गुश्कित से मिटवू के द्वारा तीन बार फल काट गिराए गए थे कि ठीक उसी वक्त वृक्ष के बील से एक नाग ( जग ) फन फैलाकर फू फू करते हुए मिटठू की दिशा में डाल पर रेंगता हुआ बढ़ आया । उसे देखकर मिटवू नीचे उड़ आया । वृथा पर भूजग को देखकर होई माता को बहुत ही आश्चर्य हुआ । क्योंकि वह अपने पूछ से तोया फल नीचे गिरा रहा था । भूजंग द्वारा गिराए गए फल कैसे खाए यह सवाल ही ;माता के सामने उपस्थित हो गया । वह चुप चाप गुजग को निहारने लगी । तब मिटठू ने माताजी से कहा , हे गाताजी । पूजंग अपने संमू शेक के गले का हार है , उसके द्वारा गिराए गए फल खाने से विषबाधा नहीं होगी ,बल्कि इन कलों से संभू शेक का आशीर्वाद अपने गर्भस्त शिशु को प्राप्त होगा । हे माताजी ।
3.माताने जी भर कर पके हुए तोया फल खाए
तुम्हारी इच्छा पूर्ति हेतु वह फल नीचे गिरा रहा है , कृपया इन फलों को सेवन किजिए । मिठू के मूह से यह वचन सुनकर हीळ गाता को और भी आश्चर्य हुआ । वास्तव में भूजग अपने पूछ से फल गिराता जा रहा था मूह से नहीं , इसलिए विषबाधा होने का सवाल ही नहीं था । यह सोचकर ही ; माताने जी भर कर पके हुए तोया फल खाए । अपनी इच्छा तृप्त हो जाने पर उसने भूजग को अभिवादन किया और आख गूद कर बुढ़ादेव को स्मरण कर उसने कहा , हे फड़ापेन । मेरी कोख से ऐसे पुत्र रत्न का जन्म हो , जिसमें सभी जीवों , पशु पक्षियों , प्राणिमात्रों एव दुश्य अदृश्य जीवों का सुख दु:ख उनकी बोली भाषा , हलचल एव इंद्रियों के हावभाव से समझने की क्षमताए हो । ऐसी प्रार्थना कर हो | माता अपने मिटठू को साथ लेकर राजमहल लौट आई । संयोग की बात यह थी कि उस वक्त हो | माताजी को गर्भावस्था का समय पूर्ण हो चुका था । उसी रात्रि को उसके गर्भ का शिशु सपने में आया और कहने लगा , हे माताजी । तुमने मुझे अपनी कोख में जगह प्रदान कर बहुत उपकार किया है , अब मेरा समय पूरा हो चुका है . इसलिए मुझे ससार में पदार्पण करने का मार्ग बताईए । सभी जीवगण्ड जिस मार्ग से जन्म लेते हैं उसी मार्ग से मेरा जन्म हुआ तो मुझमें और अन्य प्राणिमात्राओं में कुछ भी अंतर नहीं रहेगा । यदि मैं तुम्हारे नाक से जन्म लेता हु तो लोग मुझे सर्दी कहेंगे , कान से जन्म लेता हूं तो कानूला कहेंगे , मलद्वार से जन्म लेता हू तो घाण कहेंगे , मूत्रद्वार से जन्म लेता हू तो पेशाब कहेंगे , तथा गुख से जन्म लेता हू तो थूक कहेंगे । इसलिए हे माताजी ! तुम मुझे कोई ऐसा मार्ग बताईए जो इन सभी मार्गों से परे है । अपने कोख के शिशु द्वारा किए गए सवाल पर ही | माता सोचने पर मजबूर हो गई । अत में उसने गर्भ के शिशु से कहा , हे पुत्र । मेरी यह जो काया है उसमें केवल दस द्वार है , और उनमें से जन्म लेने का मात्र एक ही मार्ग है । जिस मार्ग से तुम मेरी कोख में समा गये हो , उसी मार्ग से तुम जन्म ले सकते हो । क्योंकि मैं नहीं जानती कि तुम किस मार्ग से कोख में समा गए हो । जन्म लेने का और कोई मार्ग है तो वह मैं नहीं जानती इसलिए तुम्हें जिस मार्ग से भी जन्म लेना है स्वय तय कर सकते हो । तुम्हारे लिए मैं अपनी कुर्बानी देने तैयार हूँ हीर्वा माताजी का जवाब सुनकर बालक ने अपने माताजी के शीष को द्वीभाजित कर जन्म ले लिया । परतु आश्चर्य की बात यह थी कि जन्म लेने के पश्चात द्वीभाजित सिर फिर से जैसे थे जुड़ गया । कुछ समय पश्चात जब हीर्वा माताजी को होष आया तब उसने एक नन्हेसे बालक को अपने बिस्तर पर हाथ पैर हिलाते हुए पाया । चकित होकर उसने अनपे गर्भ को देखा ।
4.कुपार इस गोंडीशब्द का अर्थ जूड़ा
सभी कुछ साधारण था । यह समसचार जब पुलशीव राजा को कह सुनाया गया तब उसे भी बहुत ताज्जूब हुआ । इसतरह एक अद्भूत एव अलौकिक शक्तिशाली पुत्र रल पाकर पुलशीब राजा को एक ओर आश्चर्य तो हुआ ही , दूसरी ओर खुशी की कोई सीमा नहीं थी । उसका जन्मोत्सव सम्पूर्ण गण्डराज्य में हर्षोल्लास के साथ धूमधाम से माया गया । बालक का नाम कुपार रखा गया । कुपार इस गोंडीशब्द का अर्थ जूड़ा ऐसा होता है।
5.कुपार लिंगो का जन्म अप्राकृतिक लगता है
सिर के बालों का जूड़ा जहा पर बाघा जाता है वहीं से उस बालक ने सिर को द्वीभाजित कर जन्म लिया था । इसलिए उसका नाम कुपार रखा गया । कुपार का दूसरा अर्थ ऐसा शुध्द तत्त्व होता है जो कभी अशुध्द नहीं होता । इन जनश्रुतियों से कुपार लिंगो का जन्म अप्राकृतिक लगता है । हो सकता है लिगो को अद्भूत एव अलौकिक बताने हेतु ऐसे अप्राकृतिक किबदान्तियों का सहारा लिया गया हो । लिगो के जन्म से सबघित ऐसे ही अनेक कथासार कोया वंशीय गोंड समुदाय में आज भी प्रचलित हैं । उक्त तीनों कथासारों पर से पहादी कुपार लिगो का जन्म भलेही अद्भूत रुप से हुआ हो , वह कोया वंशीय गोंडी गोंदोला के सगावेन गण्डजीवों का गोंडी पुनेम गुरु मुखिया था , इसलिए उसके जन्म से सबंधित कथाओं की अपेक्षा उसके द्वारा प्रस्थापित किए गए गोंडी पुनेमी मूल्यों का महत्व अधिक है । अध्यन के दौरान हमें अनेक बुजूर्गों द्वारा यह बताया गया कि जिस वक्त कुपार लिगो का जन्म हुआ उस वक्त जोरों से हवा बह रही थी , आकाश में काले काले बादल अचानक छा गए , बिजली कौंदने लगी थी , और बादलों की गर्जना होने लगी थी ।
6.अन्धो की आखों में रोशनी आ गई
तेज हवा के स्पर्श से लगड़े लूले व्यक्तियों का अपगत्व दूर हो गया बिजली की चमक से अन्धो की आखों में रोशनी आ गई , बादलों की गर्जना से बहरे व्यक्तियों के कान खूल गए और साफ सुनाई देने लगा तथा मूशलाधार वर्षा में पौगने पर त्वचारोगियों का रोग दूर हो गया । इसतरह जन्म लेते ही कुपार लिगोने कोया वंशीय गण्डजीवों की सेवा करना आरंभ कर दिया । इसलिए गोंडी पुणेम का जय सेवा दर्शन ,जय जोहार दर्शन अत्यत मौलिक , महत्वपूर्ण , सर्व कल्याणबादी एवं सेवाभावी है । सगावेन गण्डजीवों का सर्वकल्याण साध्य करना ही उसका अंतिम लक्ष है . इस बात की पुष्टि होती है ।
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