गोंडी नृत्य वादयों के प्रकार / गोंडी संस्कृति सबसे अलग है adivasi nritya instruments

 
गोंडी नृत्य वादयों के प्रकार

गोंडी नृत्यों के प्रकार

नृत्यों के पदन्यासों के आधार पर गोंडी नृत्यों को रिलो नृत्य, पटार नृत्य ,डोहरा नृत्य ,बिर्वा नृत्य,सयला नृत्य , मंडराना बिर्वा नृत्य,मांदरी नृत्य,करसाड नत्य, तिंनानामुर नत्य, करमा नृत्य ,जतरा नत्य , कोहकांग नृत्य , गेडी नृत्य, मांडा नृत्य, चिटकोला नृत्य,पन्ंनींग नृत्य,कोलांग नृत्य, डिटांग नृत्य, हुलकी नृत्य आदि प्रकरो में विभाजित किया जा सकता है ।गोंडी संस्कृति सबसे अलग है.

गोंडी नृत्य वादयों के प्रकार

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Gondi dance arguments गोंडी पुने मुठ्वा पहांदी पारी कुपार लिंगो आद्य संगीत्तज्ञ है । वे एक साथ अठारह वाद्य बजाया करते थे.और अठारह कलाओ के ज्ञाता थे। आज भी कोया वंशीग गोंडी गोंदोला के गण्हजीव लिंगो के अठारह वाद्यों को गिना सकते है, जिनको लिंगो ने धारण किया था । इनमें दो सुषिर वाद्य है, चार तत वाद्य है, छह वितवाद्य है और छह घनवाद्य है ।

अ ) सुषिर वाद्य ( सूर वाजा ) -

छिद्रों में फूंक मारने से सूर ( ध्वनी ) उत्पन्न करने वाले वाद्यों को सुषिर वाद्य कहते हैं । उसेही बा सूरी , नलगूजा सुलूड , या उलुड कहा जाता है । ये वाद्य दो प्रकार के होते है ।

( १ ) वहूर पेरा- अर्थात बांस का बना हुआ बांसूरी जिसे नलगुजा या उलुड कहा जाता है । इसके दूसरे प्रकार को फेकड़ी कहते है ।

( २ ) थुर्रा या हकुम -यह शंक का रूप है जिसे थुर्रा कहा जाता है । यह भैसे के सिंग का बना होता है । या वाद्य देवस्थलों में होता है । यह किसी संकेत की सूचना देने के लिये बजाया जाता है ।

ब ) तत वाद्य-

तत वाद्य वे हैं जो जंतुओं से युक्त होते हैं । इन्हें तंत्री वाद्य भी कहा जाता है । गोंडी में इसे कांगरी या कीकरी कहते हैं । इनमें बजाने के लिये कोण,धनुष्य या अंगुली का प्रयोग किया जाता है । तत वाद्य अनेक प्रकार के होते है,जिनमे चार मुख्य प्रकार है!

( १ )कीकरी-कीकरी को सारंगी कहा जाता है ! इसका मुख्य पनस या साल की लकड़ी से बनाया जाता है ।
लंबाई में तीन बालीस के बराबर होती है !इसके शिर के ऊपर पक्षियों की आकृतियां कुरेदी जाती है । जिनमें पार गुख्य प्रकार हैं ।इसमे तीन तंतु होती है और वादन धनुष्य या बिल से होती है ! यह धनुष्य घोडे के पुंच के बालों की बणी होती है !

( २ )ढुसीर - इसे नारीयल के गोलार्थ में बांस की नली जोड़कर तयार किया जाता है । उसके मुख को चमड़े से आच्छादित किया जाता है इसमें भी घोड़े के बाल लगे होते है और घोड़े के बाल लगी धनुष से बजाया जाता है । इसे कंधे पर लटकाया जाता है ।

( ३ ) किंदरी - यह सीतार का प्रकार है । इसमें बांस की कमचियों के चार तार होते है इसका घट या पेन्दा कददू का बना होता है । इसे तंबोरा भी कहा जाना है

( ४ ) डुमिर या टोयली - इसे गीटार कहा जाता है । इसके ऊपर तांबे के दो तार कसे होते हैं। वह मोटे तक्ते का बना होता है । इस वाद्य का प्रयोग बुर्रापेण की स्तुति या विवाह समारोह में हल्दी चढ़ाते वक्त बजाया जाता है ।
कया आप जाणते हो  750 आकडा  33 कोट पेंक {देव}

( क ) वित्तवाद्य-


ये चमड़े के मढ़े हुए होते हैं । इन पर आघात करने पर वे बजते हैं । ये छह प्रकार के होते हैं । हातो से या दण्डो से बजावा जाते हैं । इसको निसान बाजा भी कहा जाता है ।

( १ ) निसान -निसान को नगाड़ा भी कहा जाता है और बजाने वाले को नगारची कहा जाता है । इसे जमीन पर रखकर दो दण्ड़ों से बजाया जाता है । यह एक मुख्य ढोल होता है । इसका मुख बैल की चमड़े से मढाया जाता है । इसको मावालोटी भी कहा जाता है । यह लोहे के पल्ली का होता है ।

( २ ) गोगा - यह लकड़ी का बना हुआ ढोल होता है । इसके मुख पर गोचर्म आच्छादित किया जाता है । इसे कंधो पर लटकाया जाता है । इस एक ही दण्ड से बजाया जाता है । इसे उत्सवों एवं महत्त्व पूर्ण व्यक्तियों के सम्मान मे बजाया जाता है । इसे भी नगाड़ा कहा जाता है।

( ३ ) तुदुम या तुडबुडी - यह एक मुखी ढोल होता है । इसका आकार कटोरे जैसा होता है । आम तोर पर यह सल्की या पुराने व्रक्ष के तना से कोर कर बनाया जाता है !इसे अपनी टागों के बिच रखकर बजाया जाता है ।

( ४ ) ढोल- यह बड़े आकार का गोलाकृत दो मुखवाला लकड़ी का एक ढोल होता है ! इसका व्यास करीब सत्रह - अठारह इंच का होता है ईसका मुख गोचर्म से ढका होता हैं ! ऐसी मान्यता है कि इस ढोल की आवाज से लिंगों और बुर्रापेण या मुर्रापेण प्रसन्न हो जाते हैं । उत्सवों में इसे दण्डों से बनाया जाता है ।

( ५ ) परांग - यह मिट्टी का बना होता है, जिसे कमर में लटका कर बजाया जाता है ! इसका दोनों मुखों पर गाय का चमड़ा मढ़ा होता है ।इसका प्रयोग मृदंग के स्थान पर भी किगा जाता है ।

( ६ ) मांदर - यह सिलेण्डर के आकार का होता है । नृत्य शैली में ईसी ढोल का प्रयोग किया जाता है । मांदर को बनाने की विशेष विधि होती है । प्रथम वर्षा के आगमन पर इस मांदर की लकड़ी को जंगल से लाया जाता है । बिजा , सिअना ,महुआ आम या गुलर की लकड़ी से बनाया जाता है । सर्वाधिक रूप में बीजे की लकड़ी ही प्रयोग की जाती है । लकड़ी काटने के पूर्व उसकी पूजा की जाती हैं और प्रार्थना की जाती है कि हम दोल बनाने के लिये तुझे काट रहे हैं । तू अच्छे ढोल जैसी आवाज पैदा करना ।


पूजा विधि होने के बाद वृक्ष को काटकर लाया जाता है और उसका मांदर बनाया जाता है । मांदर बनाकर उसे एक वर्ष तक सुरक्षित जगह पर रखा जाता है और वर्षारुतू के आगमन पर फिर से उसे निकात कर उस पर चमढ़ा मढा जागा है । खाल चढ़ाने वक्त भी उपयुक्त संस्कार किये जाते है ताकि वह बजाते वक्त फट ना जाए । इसतरह मांदर तैयार करने की विधि बहुत लम्बी होनी है ।
[ कोया वंशीय गोंडी पुनेम के गण्डजीव अपना पुनेम ( धर्म ) परिवर्तन करते हैं ]

(ड ) घनवाद्य -

घनवाद्य वे हैं जो विशेषता: धातु या काष्ठ से बनते हैं । जिनकी संख्या छह होती है । जो इस प्रकार हैं ।

( १ ) पिटोर्का - यह लकड़ी की बनी हुई प्याली के आकार की एक घंटी होती है । इसे टापर या टापरी भी कहा जाता है । पिटोर्का वाद्य सेमुर या सिऊंना वृक्ष की बनी होती है । इस पर दण्डों का आपात करके बजाया जाना है ।

( २ ) टिंडोरी - इसे कच्ची टिंडोरी भी कहा जाता है जो लोहे का बना होता है । लोहे से बनी इस छोटी सी बीन से इतनी मधुर ध्वनी निकलती है कि सांप भी नाचने लग जाता है! इस वाद्य का आविष्कार लिंगो ने किया था क्योंकि वह लेंग से बजाया जाता है ।

( ३ ) घूगरू , घण्टा या घण्टी- यह पीतल या लोहे के बने होते है । करघण की डोरी से लटकाकर पैरों में बांध कर नत्य किया जाता है जो विशेष संगीत पैदा करते हैं ।

( ४ ) कटवाकींग या पयड़ी - लोहे या पितल का बना हुआ यह एक पोला धनवाद्य है । उसके अंदर उसी धातु की गुटिकाएं होती हैं, जिस धातु की यह बनी होती है । कटवाकींग की धून से नृत्य करते वक्त वातावरण संगीतमय हो जाता है ।

( ५ ) चिटकुला - चिटकुला वाद्य लकड़ी के बनाये जाते हैं, जिनमें कुंडी लगाकर हाथों के उंगलियों में पहनते है और नत्य करते वक्त बजाए जाते हैं ।

( ६ ) झणेरा या झांझ या मंजिरा- झांझ या मंजिरा को झनेर कहा जाता है । ये पीतल के बने होते है । जीस की आकृति का पीतल का झनेश दण्ड के आघात से बजाए जाते हैं । लिंगो के बनाये गये अठारह वाद्यों का आज भी कोया वंशीय गोंड समुदाय में नृत्यूगान के वक्त प्रयोग किया जाता है । गोंडी संस्कृती की और भी जाणकारी उपलब्द है

Types of Gondi Dance Instruments
इसतरह ढोलक , नंगाड़ा ,टिमकी ,फेपड़ी, बासरी, ढपली, कींगरी , चिटकोला, झनेरा ,घन्ंनीया ,झिलांग ,घोर्क थुर्रा ,कलंगी, कोलांग , मांदर , गोएन्दाड़ी पयड़ी या सिड़गो आदि सभी वाद्य लिंगो के देन है पहांदी पारी कुपार लिंगो का जन्म कैसे हुआ

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