गोंडी पांच मुठवा शक्तियों की पूजा
सयमुठोली पण्डुम : रायमुठोली पूजा याने पांच मुठवा शक्तियों की पूजा , जिसे पांच पावली पूजा भी कहा जाता है । सयमुठोली पण्डूम कोया वंशीय गोंड समुदाय के गण्डजीवों के पांच मुठवा शक्तियों की उपासना पर्व है । गोंडी पुनेम मुठवा पहांदी पारी कुपार लिगो ने कोया वंशीय गण्डजीवों के समुदाय को कुल बारह रागायुक्त शाखाओं में विभाजित किया है , जिसमें पांच भुमका सगा भी समाहित हैं , जो गोंडी पुनेम दर्शन के सार का प्रचार एवं प्रसार किया करते हैं ।
रायतार जंगो और हीरासुका पाटालीर
कोया वंशीय गोंड सगा समुदाय के भुमका सगाओं के रूप में जिन पाच सगा शिष्यों को लिंगो ने अपनी जिम्मेदारी बहाल की थी उनके नाम नारायणसूर , कोलासूर , हीराज्योति , मान्कोसुंगाल और तुरपोराय थे । इन पांच मूठों की उपासना गोंड समुदाय के मण्डजीव प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को करते हैं । क्योंकि इनके माध्यम से ही गोंडी पुनेम मुठवा पहांदी पारी कुपार लिंगो ने संपूर्ण कोया वंशीय गण्डजीवों को सगा सामुदायिक सरचना में उनके आनुवांशिक गुण संस्कारों के अनुसार विभाजित किया था ।Gondi five powers festival
इसके अतिरिक माघ पूर्णिमा के दिन ही गोंडी पुनेम मुठया पहांदी पारी कुपार लिंगो , गोंडी पूनेम दाई रायतार जंगो और हीरासुका पाटालीर ने मिलकर प्राचीन काल में कली ककाली दाई के मण्डूद कोट बच्चों को कोयली कचाड़ लोहगढ़ गुफा से मुक्ति दिलाई थी । इसलिए जंगो , लिंगो और हीरासुका पाटालीर की भी उपासना कोया वंशीय गण्डजीब माघ पूर्णिमा के दिन करते हैं । इस अवसर पर कोया वंशीय गण्डजीवों के सगा देवों की पवित्र पावन मुक्ति भूगि कोयली कचाड़ लोहगढ़ जो हावड़ा मुम्बई रेल्वे लाईन पर दरेकसा रेलवे स्थानक के पास है , वहा बहुत बड़ा पुनेमी मेला लगता है ।कुपार लिंगो का जन्म के बारेमे कूच जाणकारी दिया गया है !
संभू नरका याने महाशिवरात्रि के पर्व
माघ पूर्णिमा को घरों की साफ सफाई , देवस्थल की पुताई और स्नानादि कर सगा देवों को स्वच्छ जल से चांदी या कासे की थाली में रखकर धोया जाता है और पेनठाना में विराजित किया जाता है । तत्पश्चात साजा या सरई के पेड़ की पत्तियों पर नैवद्य चढ़ाकर उनकी पूजा की जाती है । गोंडी संस्कृती मे कितणे प्रकार के त्योहार होते है!
प्रथम कतार में गोएण्दाड़ी , दूसरे कतार में सगा मुठवा , तीसरे कतार में सगा गोंगो के प्रतिकों के दायें बाजू में सभू गवरा और बायें बाजू में लिंगो जंगो के प्रतिक रखे जाते हैं परिवार के सभी सदस्य मिलकर उन सभी की पूजा करते हैं । यह पूजा माघ माह की पूर्णिमा को या उसके बाद संभू नरका याने महाशिवरात्रि के पर्व तक अपने सुविधा के अनुसार की जाती है । विशेष रूप से स्त्रियों की रजोसाला के दौरान यह पूजा नहीं की जाती । ( गोंडवाना सगा १२ / १ ९ ८६ )
1 टिप्पणियाँ
Thank you sir
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