पहांदी कुपार लिंगो का जन्म कैसे हुआ
💻 पारी कुपार लिगो के जन्म के बारे में कोया वंशीय गोंडी गोंदाला के सगावेन गण्डजीवों में अनेक तरह की किवदन्तिया प्रचलित है । उनमें से चंद्रपुर , आदिलाबाद , वारंगल , इस्टगोदावरी और बस्तर परिक्षेत्र में जो कथासार प्रचलित है उसके अनुसार गोंडी पुनेम मुठवा पहादी पारी कुपार लिगो का जन्म कोया पुंगार से हुआ है , ऐसी जानकारी मिलती है । ठीक ऐसा ही कथासार डॉ . हेमन्डॉर्क के दी राजगोंडस् ऑफ आदिलाबाद इस किताब में भी वर्णीत है । मुह जबानी कथासारों के अनुसार , एक बार हिर्बा दाई को पेण्डूर गंगा में जलविहार करने की इच्छा हुई ।
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- गोंड समुदाय के रिस्ते नाते
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- गोंडी पुणेम का प्रचार
पेण्डूर मेट्टा सें पेण्डूर गंगा का उगाम
पेण्डूर मेट्टा सें पेण्डूर गंगा का उगाम होकर वह पुर्वाकोट गण्डराज्य से बहती थी , जिसके बहते पानी में जलविहार करने हिर्बा माता अपने सेविकाओं के साथ गई । नदी किनारे एक पेड़ की छाव तले अपने वस्त्रादि उतारकर वह नदी के प्रवाह में जलविहार करने उतर गई । उसे नदी के प्रवाह में एक सुंदर कोया पुंगार बहता हुआ दृष्टिगोचर हुआ । उसे पकड़ने हेतु ही | माता तैरते हुए बीच प्रवाह में गई । जैसे ही उसने अपने दोनों हाथों से उस कोया पुगार को धर लिया , उसका एक सुदर बालक के रुप में रुपांतर हो गया । उस बालक को लेकर हिर्बा माता अपने सेविकाओं के साथ राज महल में लौट आई । पुत्र रत्न प्राप्त होने की वार्ता पुलशीव राजा को कह सुनाया गया । उस नवजात शिशु को देखकर पुलशीव राजा पुलकित हो उठा । उसके नामकरण विधि का कार्यक्रम बड़े ही धूम धाम से आयोजित कर उस बालक का नाम कुपार रखा गया उसके मस्तक की चमक ध्यान में रखकर उसे रुपोलंग याने चांदी जैसे चमकनेवाला कहा गया । कोया पुंगार इस गोंडी शब्द का अर्थ कोया वंशीय पुत्र ऐसा होता है , जिस पर से जो कोया फूल नदी के प्रवाह में बहता हुआ आया या वह फूल नहीं बल्कि पुत्र था , जिसे हिर्बा दाईने अपने आचल में ले लिया । आगे चल कर वही अपने गुणों से पहांदी पारी कुपार लिंगो के नाम से जाना गया । पारी पहांदी कुपार लिंगो ने सर्वकल्याण का मार्गदर्शन किया है ।
पारी कुपार लिगो के जन्म के संबंध मे जो दुसरी किवदंती दिशेष रूप से नागपूर,वर्धा, भंडारा ,सिवणी ,बालाघाट जिलो के परीक्षेत्र मे प्रचलित है. [दुसरी किवदंती👉Read More]
लेखक ;- आचार्य मोतीरावेन छतीराम कंगाली
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