विर बाबूराव पुल्लेसुर शेडमाके का जन्म और मृत्यू | Adivasi krantivir bapurao shadmake igondi

Bapurao shedmake photos


विर बापूराव शेडमाके  रिअल इतिहास

Note: यंहा एक से दस पेज की जाणकारी दिया गया है।जैसे की page no 1 से Page no 10 नीचे दिये गये पेज पर क्लीक करे और हर एक पेज की जाणकारी प्राप्त करे.


बाबुराव शेडमाके को फाशी कब दिया

दिनांक 21-11-1858 को सुबह वीर बाबूराव शेडमाके को फांसी दी गयी ।

इज  टेबल पर पेज नंबर एक से पांच तक दिया गया है 

 Table of contant 01


विर बाबूराव पुल्लेसुर शेडमाके का  जीवन 

Adivasi krantivir bapurao shadmake 

बाबूराव पुल्लेसुर शेडमाके गोंडराजा भिम बल्लाल सिंह आत्राम ने इ . स . 870 में शिरपुर आंध्रप्रदेश में गोंडराज्य की स्थापना की । इस घराने में वंश इ.स. 970 में आदिया बल्लाल सिंह आत्राम नाम का शौर्यवान तथा बहादुर राजा हुआ । इस राजाने अपने राज्य का विस्तार बड़े पैमाने में किया । उस कारण उसे शिरपुर से राज्य शासन संभालना कठिन हुआ । इसलिए आदिया बल्लाल सिंह ने शिरपुर से अंदाजन 20 कि.मी. अंतर पर चन्द्रपुर के पास बल्लारशाह इस नाम से राजधानी स्थापित की । यह आज का बल्हारपुर हैं । आत्राम घाराने में इ.स. 1340 में खांडक्या बल्लाल सिंह राजा हुआ । इस राजा ने फिर से अपने राज्य का विस्तार किया । उसने चांदागढ़ किले के किनारे की नींव बांधी और राजधानी बल्लारशाह से चांदागढ़ को हिला दी । किले का बांधकाम राजा धुडया सिंह आत्राम की कालावधि के दौरान पूरा हुआ । इस वंश के राजाओं ने चांदागढ़ राज्य का विस्तार पश्चिम में माहूर तक तो पूर्व में वैरागढ़ तक तथा उत्तर में देवगढ़ नागपुर तक साम्राज्य का विस्तार किया । इ.स. 1696 से 1704 इस कालावधि में चांदागढ़ में बिरसा आत्राम नाम का गोंड राजा हुआ । इ.स. 1751 में नागपुर के राजे राघुजी भोंसले ने आखिरी गोंडराजा नीलकंठ शाह की और से चंद्रपुर सहित सारा गोंड राज्य छिन लिया । इ.स. 1751 से 1853 इस दौरान सारा प्रदेश भोंसलों के आधिपत्य में था । रघुजी भोंसले की मृत्यु के बाद ईस्ट इंडीज

Page no 1

कंपनी ने ब्रिटिश वह हिस्सा अपने कब्जे में लिया । ऐसें मे ही अंग्रेजों के विरोध में लड़ाई करनेवाले एक महान क्रांतिकारक वीर शहीद बाबूराव पुल्लेसुर सेडमाके यह राज गोंड घराने मे पैदा हुए । उन्होंने अंग्रेजों के नाक में दम कर रखा था । महाराज पुल्लेसुर बापू इनकी पत्नी का नाम त्रुरजा कुंवर था । इन्हें चार लड़के थे । उसमें का बड़ा लड़का बाबूराव का जन्म 12 मार्च 1833 को गडचिरोली जिले के अहेरी तहसील के मोल्लमपल्ली इस छोटेगांव में राजगोंड इस आदिवासी घराने में हुआ । पुल्लेसुर इस शब्द का गोंडी भाषा का अर्थ शूरवीर ऐसा है । पुल्लेसुर बापू महाराज का फुकेरा भाई प्रतापसिंह की और बाबूराव इनकी शिक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी । बाबूराव यह बचपन से ही तीक्ष्ण बुद्धि के थे । वैसे ही तलवार , भाला इत्यादि शस्त्र चालने में प्रवीण थे । उन्हें गोटूल मेशुरता के पाठ मिले थे । गोटूल अर्थात संस्कार केंन्द्र इसमें उस वक्त सभी प्रकार की शिक्षा दी जाती थी । गर्मी के दिनों में बाबूराव और उनके दोस्त खेलते - खेलते जंगल में वेना नदी के किनारे घूमने गए थे । तब वहां उन्हें एक चीता मधुमक्खियों के छत्ते से मधुखाने के लिए पेड़ पर चढ़ा हुआ दिखाई दिया । उस कारण साथ में आए दोस्त बहुत घबरा गए । किंतु बाबूराव ने उन दोस्तों को दिलासा दिया । किंतु चीते ने पेड़ से बाबूराव पर छलांग लगाई मगर बाबूराव न डरते चीता के दो पैर पकड़कर पूरी ताकत से घुमाया उसमे चीता जमी पर गिरा और वह चीता भाग गया । इस घटना से बाबूराव की हिम्मत बढ़ गयी । उस के साहस और बहादुरी की चर्चा हमेशा होती रहती थी । संस्कार केंद्र अर्थात गोटुल का दर्जा बढाया

Read this ⬇⬇

Page no 2

गया था । उस गोटुल में गोंडी , हिंदी , तेलगु इत्यादी भाषाएं पढ़ाई जाती थी । उस वक्त राजा महाराजा अपने राज्य का कार्य गोंडी भाषा में करते थे । आज भी गोंडी भाषा लिपी आस्तित्व में है । मगर उस गोंडी भाषा का विकास स्वतंत्र भारत में हुआ नहीं यह विशेष है । बाबूराव 14 साल के हुए उन्होंने गोटुल संस्कार केंद्र की शिक्षा पूरी करके शिक्षित हो गए । आगे शिक्षा के लिए लार्ड डलहौजी ने आरंभ किए अंग्रेजी विद्यालय रायपुर में उन्हे भेजा गया । इस विद्यालय में बाबूराव में परिवर्तन हुआ और वे 18 साल के हुए । गोंड आदिवासियों में बालविवाह प्रथा नही है । जो कोई बाल विवाह करेगा उसे शिक्षा दंड दी जाती थी । बाबूराव का विवाह आंध्रप्रदेश की आदिलाबाद जिले के चेनूर की राज कुंवर इस कन्या के साथ 9 मार्च 1851 को हुआ । मोलमपल्ली , अडपल्ली , घोट इन तीन विभागों की सत्ता सेडमार्के कुल वंश की थी । मोलपल्ली के जमीनदार के पुत्र वीर बाबूराव शेडमाके यह अडपल्ली के जमीनदार व्यकटराव शेडमाके को मिलने गए क्योंकि उस काल में अंग्रेजों की छत्रछाया में कुछ साहूकारों ने जनता का शोषण करना प्रारंभ किया था । साहूकारों को अन्याय से जनता को कैसे छुडाएं इस बारे में विचार विनिमय करना आवश्यक था । उस वक्त वहां से घोट परिक्षेत्र के रमय्या साहूकार जा रहा था । उसने अहंकार की भावना से बाबूराव की ओर देखा । उनका परिचय करने के लिए ठहरा । मोलपल्ली के महाराज पुल्लेसुर बापू इनके ज्येष्ठ पुत्र बाबूराव है ऐसा व्यंकटराव ने परिचय कर दिया । उसी वक्त रमय्या साहूकार ने कुछ विचार न करते कहा की , महाराजा पुल्लेसुर ने

Page no 3

पिछले साल रु .500 / - कर्ज लिया था वह आज तक वापिस नही किया उन्हे तुम जमीनदार कहते हो । वस्तुत : पिछले साल अकाल गिरने से एक किसान को पैसे की आवश्यकता होने से महाराज पुल्लेसुर बापू के पास आया था । उस वक्त रमय्या साहूकार वहां उपस्थित था । उस कारण महाराज ने किसान को कर्जा देने को बताया था । रमय्या साहूकार पर बाबूराव को क्रोध आया उन्हों ने एक पत्थर से साहूकार का सार फोंड दिया । उसके बाद बाबूराव ने मन मे विचार किया की आज कोई भी साहूकार जो गरीब जनता को लूटता होगा उसके पास का सभी कालाधन लूटकर गरीबों में बांटना चाहिए । यह निर्णय लेकर देवलमरी इस गांव में आए । उन्होंने कोंडया साहूकार के घर में प्रवेश लेकर कोंउया साहूकार को चाकू दिखाया । उन्हों ने तिजोरी की चाबी लेकर तिजोरी खोलकर उसमें से 500 रुपए लिए और कोंडया साहूकार को धमकी दी की अगर अब लोगों का शोषण करते रहा तो सारा धन लूटकर ले जांउगां । बाबूराव सेडमार्के ने 500 रुपए लेकर रमय्या साहूकार की और रात को 12 बजे गया । रमयया साहूकार को उठाकर उसे तिजोरी खोलने को बताकर उसके कर्जे खाते का दप्तर निकालकर वह जला दिया और 500 रुपए उस साहूकार के मुंह पर मार कर फें के ऐसा ही एक साहूकार राजगढ़ परिक्षेत्र में रामजी गेडाम रहता था । वह अंग्रेजों का हस्तक दलाल था । उसे पाठ पढाना ऐसा विचार बाबूराव सेडमार्के ने किया । इसलिए घोट के किले में अपनी सेना तैयार की । उन्होंने अंग्रेजों की जुल्मी सत्ता के बारे में अपने सैनिकों का समझाकर बताया और वैसा उन्होंने अपनी सेना को प्रशिक्षण भी दिया । इस तरह घोट की जांबाज

Page no 4

सेना अंग्रेजों के विरोध में युद्ध करने के लिए तैयार हुई और अपनी मातृभूमि के मुक्ति के लिए बलिदान देने के लिए तैयार हुई इस तरह बाबूराव शेडमाके की सेना में गोंड , गोवारी , दलित , कुणबी , तेली , मराठा मुस्लिमों ने अपने सभी भेदभाव भूला कर बाबूराव जी की सेना में शामिल हुए । उन्होंने अंग्रेजो की गुलाम गिरी से भारत माता को मुक्त करने का निश्चय किया और अंग्रेजों की सेना पर हमला करना शुरू किया । उन्होंने अंग्रेंजो की नाक में दमकर रखा था । गोंड हिंदू और मुसलमान धर्म के पांच सौ सशस्त्र सेना खड़ी करके जुल्मी अंग्रेजों के विरोध मे शस्त्र उठाया । लड़ाई शुरु हुई अंग्रेजों ने चांदागढ़ में अपना अधिकार प्राप्त करते ही बाबूराव सेडमार्के ने सन् 1857 अंग्रेजों के विरोध में विद्रोह पुकार कर प्रथम संघर्ष खड़ा किया था । सबसे पहले बाबूराव शेडमाके ने अंग्रेजों को भगाने के लिए अंग्रेजों का मांडलिक सहायक राजागढ़ का गेडाम जमीनदार पर हमला करके उसका 7 मार्च 1858 को शिरच्छेद किया । इसका समाचार समझते ही अंग्रेज सेना राजगढ़ परिक्षेत्र की ओर दौड़ने लगी । गडीसुर्ला , नांदगांव , घोसरी में 13 मार्च 1858 को अंग्रेज सेना से लड़ाई हई । अडपल्ली के जमीनदार व्यंकटराव राजेश्वर राज गोंड , बाबूराव शेडमाके को आकर शामिल हुए । डिप्टी कमीशनर कैप्टन घबरा गया किंतु उसने इन दोनों पर अपनी सेना भेजी 19 अप्रैल 1858 को सगणापुर में दोनों पक्षों की सेना एक दूसरे से भिड़ी और उनमें घनघोर लड़ाई हई । बाबूराव सेडमार्के ने गुप्त कार्यवाही करके अंग्रेज अधिकारियों की सुरक्षित छावनियों पर हमला किया और बम्ब विस्फोट कर के अंग्रेजों को हिलाकर

Page no 5

रख दिया । घोसरी के पास एक बार अंग्रेज और बाबूराव की सेना में भयंकर ऐसी लड़ाई हुई और उसमें कई अंग्रेज सैनिक मारे गए । इस लड़ाई में बाबूराव शेडमाके की विजय हुई । संगणापुर के युद्ध में अंग्रेजी सेना पराजित होने पर जान बचाकर भाग गयी । अंग्रेज सेना एक एक करके इकठ्ठा हुई । उनकी सहायता को कैप्टन क्रिक्टनने चांदागढ़ से अंग्रेज सैना की दूसरी टुकड़ी बटालियन गोला बारुद के साथ रवाना की । 27 अप्रेल 1858 को बाबूराव सेडमार्के के सैनिको ने बामन पेठ की नाकाबंदी की । अडपल्ली , पलेझरी , मार्कंडा , रेंगेवाही , अनकोडा , चंदनवेली , इस ग्रामीण क्षेत्रों के जंगलो में निवास लेकर वीर बाबूराव शेडमाके की क्रांति सेना की टुकड़ी बटालियन सशस्त्र रुप से तैनात थी । अंग्रेजी सेना वीर बाबूराव सेडमार्के को पकड़ने के लिए बामनपैठ के क्षेत्र में आयी । उसी समय वीर बाबूराव शेडमाके इनकी सेना ने अंग्रेजी सेना पर हमला किया । चार घंटे युद्ध चला । इस युद्ध में बहुत अंग्रेजी सिपाही मारे गए । कुछ सिपाही भाग गए और कुछ सिपाहीयों ने शरणगति प्राप्त की । वीर बाबूराव शेडमाके की जीत हुई बामनपेठ पर क्रांतिसंग्राम सेना का पीलाध्वज फहराया गया । आलापल्ली में एक रात और एक दिन ठहरकर वीर बाबूराव सेडमार्के ने योजना बनायी । 29 अप्रेल 1858 को रात के समय अचानक वीर बाबूराव की सेना ने चिचगुडी में अंग्रेज अधिकारियों के कैम्प पर हमला किया । इस हमले में टेलीफोन गार्ड लैंड , और हॉल मारे गए । किंतु उसका सहकारी पीटर भाग गया । वह जंगल में अपनी जान बचाने के लिए चोर मार्ग से चांदा

 Table of content 02 

 उपार टेबल मे दिये गये पेज नंबर पर क्लीक करे....

Page no 6

को पहुंचा । चिचगुडी की घटना की जानकारी चांदागढ़ जिल्हाधिकारी कैप्टन क्रिक्टन को दी । इ.स. 1851 से 1861 तक अहेरी राजसत्ता राजमाता लक्ष्मीबाई आत्राम के पास थी । किंतु इस परिक्षेत्र में वीर बाबूराव शेडमाके का वर्चस्व था । वीर बाबूराव सेडमार्के को गिरप्तार करने के लिए नागपुर से कैप्टन शेक्सपीयर को अहेरी में बुलाया गया । कैप्टन क्रिक्टन का गुप्त अहवाल खलिता लोकर कैप्टन शेक्सपीयर अहेरी को पहुंचा । उसने राजमाता लक्ष्मीबाई आत्राम को गुप्त खलीता सौंपा , उस गुप्त अहवाल में कहा गया था की अंग्रेज सरकार के अधिकार के अहेरी जमीनदारी के घोट अडपल्ली और मोलपल्ली उस जमीनदारी के जमीनदार बाबूराव शेडमाके और व्यंकटराव इनके द्वारा अंग्रेज प्रशासन के विरोध में विद्रोह करने से राजद्रोह के गुनाह के साथ अंग्रेज अधिकारी गाडलैंड और हाल को जान से मारने का गुनाह है । अगर इन दो उप जमीनदारों को पकड़कर अंग्रेज राजसत्ता के स्वाधीन किया नहीं गया तो अहेरी जमीनदारी जप्त की जाएगी । इसके बाद आप को किसी भी प्रकार से अधिकार नहीं रहेगा । यह गुप्त संदेश पढ़ने के बाद लक्ष्मीबाई ने वीर बाबूराव शेडमाके को पकड़कर देने की शर्त मान्य की । उसके अनुसार जमीनदारी कचेरी में गुप्त हेरों की नियुक्ति की गयी । वीर बाबूराव शेडमाके को जिंदा या मृत पकड़ने के लिए नियुक्त किए गए कैप्टन शेक्सपीयर फौज्य फाटा लेकर मोलमपल्ली की ओर बढ़ने लगे । उनकी सेना यह वीर बाबूराव की सेना से दस गुना ज्यादा थी । अंग्रेज गुप्त हेरों द्वारा जानकारी कैप्टन शेक्सपीयर को मिली थी की वीर बाबूराव शेडमाके

Page no 7

और वीर व्यंकटराव यह घोट परिक्षेत्र में परसापेन पूजा कार्यक्रम में सहभागी होने के लिए आने वाले है । उसी कारण कैप्टन शेक्सपीयर ने अपनी सेना को घोट परिसर में जाने का आदेश दिया । दिनांक 10 मई 1858 को सुबह के समय अंग्रेजी सेना के प्रतिनिधी घोट गांव के वासियों को इशारा पत्र देकर लौट गया । इस पत्र में लिखा था की , अंग्रेजी सरकार के गुनहगार बाबूराव पुल्ले सरराज गोंड और व्यंकटराव राजेश्वर राव राजगोंड को हमारे हवाले करो , अन्यथा घोट जमीनदारी जप्त की जाएगी । यहां होने वाले खून खराबों के लिए वे स्वयं जिम्मेदार रहेंगे । तीन तोपों की गर्जनाकर लेने के बाद आपको समय दिया जाएगा । चौथी तोप के आवाज के साथ हमारी सेना आक्रमण करेंगी । आदेशानुसार कैप्टन शेक्सपीयर चांदा यह पत्रक पढ़ने बाद घोट ग्राम कमी क्रोधित हो गए । उन्हों ने अंग्रेजों के विरोध में युद्ध करने का निर्णय लिया । जंगमसेना और गांव के स्त्री पुरुष पर्वत की और मोर्चा संभालकर अंग्रेजों की तो फोंकी आवाज की राह देखने लगे । थोडी देर के बाद तीन तो फोंकी गर्जना हुई । चौथी तोप की गर्जना होते ही अंग्रेज सेना घोट के पर्वत की ओर कूच करते दिखायी दी । तो कैप्टन शेक्सपीयर सफेद घोड़े पर सवार होकर सेना का संचालन कर रहा था । उसने पर्वत को घेरा डालने का आदेश दिया किंतु सेना को जंगल की लड़ाई का अनुभव न होने के कारण उन में गड़बड़ निर्माण हुयी । किंतु वीर बाबूराव सेडमार्के इनकी बहादुर सेना पर्वत के पेड़ों के पीछे पत्थरों के पीछे छुपकर बैठी थी । कैप्टन शेक्सपीयर अंग्रेजी सेना को गोलीबार करने का आदेश देते ही सेना ने गोलीबारी और तोफों से

Page no 8

गोलाबारी करने की शुरुआत की तब वीर बाबूराव के बहादुर सैनिक और ग्रामवासी तलवार भाले , कुल्हाड़ी , पत्थर इत्यादी शस्त्रों के साथ अंग्रेजी सेना पर टूट पड़ें । तोप गोलों की आवाज से आस पास की भीड़ भाड़ पेटतला , दडपान मुंडा , गुडापल्ली , अडपल्ली , मार्कंडा , मकेपल्ली , भीमनबोडी , करंदूल , रेगडी इत्यादी गांवों के ग्रामवासी शस्त्रों क साथ घोड परिसर की ओर दौड़ पड़े । इस युद्ध में दोनों बाजुओं के सै निक मृत हुए । ऐसे में ही ग्रामवासियों ने अपने पशुओं को सेना की दिशा में भगा दिया । उस कारण अंग्रेज सेना पशुओं की भीड़ में फंस गयी । इसका लाभ उठाकर वीर बाबूराव शेडमाके और वीर व्यंकटराव कुरुड़ के जंगल में आश्रय लिया । इधर अंग्रेज सेना हाथ मलते रह गयी । हमारों स्त्री पुरुषों के खून से घोट की जमीन लाल हो गयी थी । वीर बाबूराव के सैनिकों को बंदी बनाकर उन्हें चांदागढ़ में लेकर जाया गया । दिनांक 24 जून 1858 को भोपाल पटनम में गोंडवाना की महारानी दुर्गावती की पुण्यतिथि स्मृति के निमित्त से बलिदान दिन समारोह मनाने के लिए वीर बाबूराव शेडमाके को सभा के लिए आमंत्रित किया गया था । इस कार्यक्रम में सामाजिक , धार्मिक और राजकीय स्थिति इन महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होने वाली थी । इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए चांदागढ़ , कांकेर , बस्तर , जगदलपुर , आदिलाबाद , हिंगोली , बुलठाणा , अकोला , यवतमाल , वर्धा , नागपुर , भंडारा , अमरावती , दुर्ग , रायपुर , बिलासपुर , सरगुजा , जबलपुर , सिवनी , मोकाशी , मुण्डेदार इत्यादि जगहों के प्रमुखों को नियोजित किया गया था । इस सभा को वीर बाबूराव ने उपस्थित रहकर सभा

Page no 9

में महत्वपूर्ण भाषण किया । सभा खत्म होने पर आयोजकों ने वीर बाबूराव शेडमाके को भोपाल पटनम में ठहरने की विनती की । इसलिए वे वहां रात में रुके । महारानी लक्ष्मीबाई आत्राम ने रोहिला सेना वीर बाबूराव शेडमाके को पकड़ने के लिए भोपाल पटनम में भेजी । महारात्री में रोहिला सैनिकों ने वीर बाबूराव शेडमाके को गिरप्तार करके बैलगाड़ी से अहेरी की ओर आगे कूच किया । सुबह जब रोहिला सैनिकों ने वीर बाबूराव शेडमाके को देखा तब वे आश्चर्य चकित हो गए । वीर बाबूराव ने उन रोहिला सैनिकों को कहा की ' दोस्तों मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं क्यों की तुम गोंडवाना के रहवासी हो में मातृभूमि के लिए लड़ाई कर रहा हूं । तुम आज भी गुलाम हो कल भी गुलाम ही रहनेवाले हो , आगे आनेवाली पीढ़ी तुम्हें माफ नहीं करेंगी । यह विचार सुनकर रोहिला सैनिक भावनीक हो गए । उन्होंने वीर बाबूराव शेडमाके को मुक्त कर दिया । n दिनांक 15 सितम्बर 1858 को अंग्रेजी सेना तारसाघाट से वेनगंगा नदी पार करने के लिए दोलकडीकी नावों का इस्तेमाल कर रहे यह बाबूराव शेडमाके ने देखा था । उन्होंने अपनी सेना को इस बारे में जानकारी देकर नांव तैयार करने को कहा । सुकन्या राउत और धर्मा गेंडाम यह दोनों मल्लाह वैनगंगा के एक किनारे से अंग्रेजी सेना नांव में लेकर दूसरे किनारे पर छोड़ने निकले एक किनारे से दूसरा किनारा नहीं दिखता था । इसका वीर बाबूराव शेडमाके के सैनिकों ने ऐसा लाभ उठाया की , मल्लाह ने दूसरे किनारे पर अंग्रेज सैनिक छोड़ने के बाद अंग्रेज सैनिक घाट चढ़ते ही उनपर वीर बाबूराव के सैनिक तेजी से हमला करते उनकी लाशे नदी के प्रवाह में छोड़ देते । इस

Page no 10

तरह अंग्रेजों के सभी सैनिक और उनके सरदार मार डाले गये । यह समाचार चांदागढ़ के जिला अधिकारी कैप्टन क्रिक्टन को समझा तो वह चिंताग्रस्त हो गया । वीर बाबूराव की सेना ने सात सौ अंग्रेजी सैनिक मारकर वैनगंगा नही की धार में बहाने का समाचार संपूर्ण दक्षिण गोंडवाना परिसर में फैला । राजमाता लक्ष्मीबाई आत्राम इनकी सेना वीर बाबूराव सेडमार्के की सेना में शामिल हुई किंतु वह एक आभास था क्यों की लक्ष्मीबाई की सेना उन्हें वीर बाबूराव स की हलचल के बारे में गोपनीय जानकारी देती थी । लक्ष्मीबाई ने वीर बाबूराव सेडमार्के को अभिनंदन का पत्र भेजकर अहेरी आने का नियंत्रण भेजा । उसके अनुसार दिनांक 18-09-1858 को वीर बाबूराव को अहेरी के राज दरबार में लक्ष्मीबाई आत्राम का दर्शन लिया । उन दोनों में महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई । बाद में खाना परोसा गया । वीर बाबूराव ने तलवार और जांबिया लक्ष्मीबाई के हाथ में देकर खाना खाने बैठे । वीर बाबूराव खाना खा रहे थे तभी कैप्टन शेक्सपीयर के सैनिकों ने उन्हें घेर लिया । फिर भी वीर बाबूराव शेडमाके न डरते हाथ की थाली एवं लोटे से सैनिकों पर हमला किया । कैप्टन शेक्सपीयर ने उन्हें गिरप्तार करने का आदेश दिया । इस तरह विश्वासघात से वीर बाबूराव शेडमाके को 18-09  1858 को गिरप्तार किया गया । बाद में उन्हें चांदा में लेकर गए और चांदा के कारावास में कैद किया । उनपर मुकदमा दायर करके उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी । दिनांक 21-11-1858 को सुबह वीर बाबूराव शेडमाके को फांसी दी गयी ।

note

यंहा दिया गया जाणकारी गोंडवाणा के गौरव बाबुराव शेडमाके इज बूक से लिया गया है

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.