गोंडवाना राज्य के महान शाहिद शंकरशाह रघुनाथ शाह की इतिहास, Adivasi krantivir shankar shah


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गोंडवाना राज्य के महान शाहिद शंकरशाह रघुनाथ शाह की जीवन

गोंडवाना साम्राज्य  उसकी समृद्धि के लिहाज से भारत का अतीत बेहद गौरवशाली रहा है गोंडवाना की धरती में अनेक गोंड राजाओं ने अलग - अलग क्षेत्रों पर सफलतापूर्वक राज्य किया जहां ऐतिहासिक सत्य है लेकिन भारत का दुर्भाग्य रहा है कि यहां जिनके हाथों में कलम थी उन लोगों ने भारत का सच्चा इतिहास लिखा ही नहीं बल्कि षड़यंत्र पूर्वक गोंडवाना के खास वीरों का इतिहास अतीत के गर्भ में दबाते रहे वजह थी कि इस भारत के घुस आए विदेशी आर्यों के हाथों में ही लेखन का अधिकार था और वह कपटी भला क्यों चाहेंगे कि उनके सामने गोंडवाना का असली गौरव संपूर्ण सत्य के साथ महिमा मंडित हो । यह प्रमाणित सत्य है कि कपटी घुसपैठिए आर्य ने कभी भी इस देश का वास्तविक इतिहास लेखन नहीं किया इसके बदले वह सैकड़ों की संख्या में धर्म ग्रंथ लिखते रहें और उसी में अपनी गपोड़ेबाजी का हुनर दिखाते रहें । आर्यों के तमाम धर्म ग्रंथों का आज हजारों निष्पक्ष विद्वानों के द्वारा समीक्षा की जा चुकी है जिसमें यह बात निष्कर्ष के रुप में सामने आया है की आर्यों के तमाम धर्म ग्रंथों में अविश्रसनीय कथानकों की भरमार है । 

अंग्रेज लेखकों ने अपने ग्रंथों में विस्तार से लिखा है । 

दूसरी ओर विदेशी इतिहासकारों ने भारतीय पृष्ठभूमि के संदर्भ में जो भी इतिहास लिखें हैं उसमें बेहद वास्तविक में तथ्यों का समावेश निष्पक्षतापूर्वक दर्ज किया गया है । गोंडवाना राज्य के संदर्भ में भी अनेक अंग्रेज लेखकों ने अपने ग्रंथों में विस्तार से लिखा है । उन ग्रंथों का अवलोकन और गोंडवाना साम्राज्य के यत्र तत्र बिखरे वृहद ध्वस्तावशेषों के अवलोकन के आधार पर भारतभूमि के गोंडवाना राजा महाराजाओं व वीरों की गाथाओं का एक गौरवशाली इतिहास प्रमाणिक रुप से मिलता है । इन्हीं में से गोंडवाना के महान वीर जिनकी अद्भुत गौरव गाथा आज भी जन जन में विख्यात है वे थे राजा शंकरशाह और उनके युवा पुत्र कुंवर रघुनाथशाह ये दोनों महावीर प्रजा सेवक व बेहद लोकप्रिय राजा थे ।

मध्य भारत के इस महान गोंडवाना राजा शंकरशाह 

सन् 1800 के दौरान जबलपुर के पास एक विस्तृत इलाका गढ़मण्डला राज्य के रुप में स्वतंत्र राज्य था जहां संग्राम शाह के वारिसों के द्वारा शासन व्यवस्था संभाला जाता था । बाद में इस गढ़मण्डला राज्य के राजा शंकरशाह हुए । मध्य भारत के इस महान गोंडवाना राजा शंकरशाह गढ़मण्डला से राजपाठ चलाते थे इस महान राजा का प्रभाव क्षेत्र के छिंदवाड़ा , सिवनी , बालाघाट , कवर्धा , मंडला , डिंडोरी , जबलपुर , रामगढ़ ,
घुघरी , नारायणगंज , बिछिया , देवहारगढ़ आदि राजाओं जमीदारों पर विशेष रुप से था । राजा शंकरशाह व उसका पुत्र युवा रघुनाथशाह अपने राज्य को बेहद व्यवस्थित तरीके से मिलकर चलाते थे । उस समय गढ़मण्डला अपने अतीत के राज्य व्यवस्था से भी ज्यादा समूड व गौरवशाली हो गया था । दोनों पिता पुत्र की सटीक व दूरदर्शी राजनीतिक व्यवस्था की वजह से यह राज्य शक्तिशाली हो गया था । राजा शंकरशाह की जनहितकारी नीतियों से राज्य के गोंड जन बेहद खुश व कुंवर रघुनाथशाह को बेहद सम्मान देते थे और उनके एक आदेश पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तत्पर रहते थे । 
अपने राजा के प्रति ऐसे समर्पण की भावना केवल गोंडवाना प्रजा के मन में ही दिखाई दे सकती है ।

 

भारत के अधिकांश हिस्सों पर अंग्रेजों की कब्जा

राजा शंकरशाह जब गढ़मण्डला पर राज्य कर रहे थे उस समय सारे भारत के अधिकांश हिस्सों पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था । बचे कुचे हिस्सों पर कब्जा करने के लिए अंग्रेज तमाम कूटनीतिक राजनीतिक तरीके अपना रहे थे । वह साम दाम दण्ड भेद की नीति के तहत सफल भी हो रहे थे । मध्य भारत का यह वैभवशाली गढ़मण्डला भी उनके निशाने पर था । इस महान राजा शंकरशाह व उसके वीर पुत्र रघुनाथशाह की लोकप्रियता व शक्ति को देखकर अंग्रेज इस राज्य पर सीधे कब्जा करने का जोखिम नहीं लेना चाहते थे । सो एक खतरनाक रणनीति को षडयंत्र पूर्वक आजमाया गया । उसके तहत अंग्रेजों ने एक दुष्ट लालची नर्मदा बक्श नामक व्यक्ति की लालच देकर उस राज्य पर वारिस के रूप में दावा करने के लिए उकसाया । लावारिस नर्मदा बक्श को यह सुनहरा अवसर लगा । इसी घोर महत्वाकांक्षा
की वजह से वह एक दिन रणनीति के तहत अपने आपको गढ़मण्डला का वारिस बताते हुए उस राज्य पर अपना दावा ठोक लिया । राजा शंकरशाह वह पुत्र रघुनाथशाह ने इस दावे को खास तवज्जो न देकर अपना राजपाठ उसी सर्मपण भाव से चलाते रहे ।
नर्मदा बक्श ने रणनीति के तहत कुछ ही दिनों बाद अपना दावा अंग्रेजों के समक्ष प्रस्तुत कर लिया और अंग्रेजों ने शंकरशाह व गढ़मण्डला पर शिकंजा कसने के उद्देश्य नई चालें चलने की तैयारी कर लिए अंग्रेज पूरी तरह से नर्मदा बक्श के समर्थन में खड़े हो गए और गढ़मण्डला पर धीरे धीरे चारों ओर से कूटनीतिक बिसाते बिछा दी । राजा शंकरशाह पुत्र रघुनाथशाह इस नए संकट से उबरने अपने क्षेत्राधिकार के तमाम जमीदारों व आम लोगों को तैयार करने में लग गये । राजा शंकरशाह अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीतियों को अच्छी तरह से समझते थे । 

पिता पुत्र ने राज्य  को सुरक्षित रखने का प्रयास करने लगे!

पिता पुत्र मिलकर अंग्रेजों से मुकाबला करने और अपने राज्य को सुरक्षित रखने का हर संभव प्रयास करने लगे । अंग्रेजों ने नर्मदा बक्श के दावे को लेकर राजा शंकरशाह व पुत्र रघुनाथशाह पर दबाव बनाना शुरू किया । राजा शंकरशाह ने नर्मदा बक्श व अंग्रेजों के तमाम दावे को खारिज करते हुए साफ तौर पर अंग्रेजों से दुश्मनी...


अब आगे की कहानी बेहद दर्दनाक तो होनी ही थी । जिस देश के गद्दारों द्वारा लोभ के विष को सीच दिया जाता है उस देश का पतन होना निश्चित है । 

राजा शंकरशाह व रघुनाथशाह को बंदी गृह में डाल दिया

गढ़मण्डला का भव्य साम्राज्य आज एक दिन में अनाथ हो गया । दोनों पिता - पुत्र को अंग्रेजों ने जबलपुर के बंदी गृह में डाल दिया । अंग्रेजों ने राजा शंकरशाह व रघुनाथशाह पर जघन्य राजद्रोह जैसे अपराध करने का आरोप लगाया जो कि पूर्व से स्कीष्ट की तरह तैयार किया जा चुका था । वैसे राजा शंकरशाह व पुत्र रघुनाथशाह अपनी मातृभूमि व अपनी गोंडवाना की जनता उनकी संस्कृति को बचाने के लिए जो कुछ भी किया वह जायज था । अंग्रेजों से विद्रोह के दौरान राजा शंकरशाह अपने राज भवन में देशभक्ति क्रांतिकारियों को निरंतर बुलाया करता था । भावी युद्ध की संभावना को देखते हुए राजा ने अपने सैनिकों को तैयार करने का आदेश दे रखा था । दूसरी तरफ राजा शंकरशाह द्वारा अपनी रियासत के तमाम छोटे बड़े जमीदारी गांव के लाखों गोंड भाई बहनों को भी अंग्रेजों के षडयंत्र को समझाने का अभियान साथ - साथ चला कर आम जनता को जागरुक करके अपने देश की रक्षा के लिए मर मिटने की भावना का संचार भी किया ।

शंकरशाह व पुत्र रघुनाथशाह को मृत्यु दण्ड की घोषणा किया गया

Shankar shah raghunath shah ki balidaan  #shankarshah

14 सितंबर 1857 को राजा शंकरशाह व पुत्र रघुनाथशाह को कैद किया गया था और चार दिन तक काल कोठरी में रखा गया । इसी चार दिनों के दौरान अंग्रेजों ने आनन - फानन में अभियोग लगाया न्यायालय में मामला चलाया और उनके अंग्रेज जजों ने तुरंत दोनों पिता - पुत्र को मौत की सजा सुना दिया । और दिनांक 18 सिंतबर 1857 को प्रातः 11:00 बजे मृत्युदण्ड दिए जाने का फैसला हुआ । खबर सुनकर राजा शंकरशाह व वीर रघुनाथशाह के लाखों प्रेमी प्रजा तथा राजा की पत्नी महारानी फुलकुंवर अपने महिला सैनिकों व रिश्तेदारों के साथ फांसी परेड स्थल पर पहुंच गई । स्थल पर भीड़ इतनी अधिक थी कि अंग्रजों पुलिस को उन्हें काबू करने में पसीने छूटने लगे । घुड़सवार हंटरधारी सिपाही जनता को एक सीमा तक दूर खदेड़ते रहे फिर भी दूसरी ओर से भीड़ आ डटती थी । मैदान के एक तरफ दो तोपें पर दिखाई दे रही थी । अचानक भवन की ओर से राजा शंकरशाह व पुत्र रघुनाथशाह को अंग्रेजी सैनिक हथकड़ियों में जकड़े लाते हुए दिखाई दिये । यह बेहद असहज और विचलित करने वाला दृश्य था । इतने बड़े राजा को हथकड़ियों से बंधा देख आम जनता उबल पड़ी । उन्हें पुन : काबू करने के लिए अब बंदूकधारी सैनिक को लगा दिया गया बंदूकधारी सैनिक बंदूकों की नाल गोंडवाना की जनता की तरफ करके मोर्चा संभाल लिया ।
इधर तोपों के मुंह से राजा शंकरशाह व रघुनाथशाह को बांध दिया गया । जबलपुर के वर्तमान एल्गिन अस्पताल के खुले मैदान में यह मृत्युदण्ड की कार्रवाई की गई । अंग्रेज अफसर ने तोपचियों को खास इशारा किया और बस तोपों से गोले आग बनकर फूट पड़े । कुछ ही क्षणों में पिता - पुत्र दोनों के शरीर के चीथड़े उड़ गये । शरीर के अंग मैदान के विभिन्न हिस्सों में जा गिरे ।
इस हरदय विदारक घटना से महारानी फुलकुंवर रो पड़ी लेकिन वह बहादुर रानी थी । अपने प्रतिकूल वातावरण को वह ठीक तरह से समझती थी । रानी ने अपने आंसू छिपाकर पति और पुत्र के बिखरे हुए अवशेषों को एक पोटली में एकत्र किया । महारानी फूलकुंवर की महिला सैनिकों व राज्य की जनता ने अवशेषों को एकत्र करने में दु:खी मन से सहयोग किया । महारानी इस समय भीतर ही भीतर सुलग रही थी । उनका बस चलता तो वहां पर उपस्थित सभी अंग्रेज हत्यारों को उसी तरह तोपों के मुंह में बाधकर उड़ा देती जिस प्रकार अभी - अभी उनके वीर पति व बहादुर पुत्र को मारा था ।

शाहिद शंकरशाह रघुनाथशाह की रीती-रिवाज से अंतिम संस्कार

दोनों शवों को एकत्रित करके महारानी व उनके महिला सैनिकों ने गोंडवाना रीति - रिवाज के अनुसार अतिंम संस्कार किया और उन लोगों ने महारानी के साथ संकल्प लिया कि महाराजा और युवराज की हत्या का बदला जरुर लिया जाएगा महारानी ने अपनी अगुवाई में अंग्रेजों की ईट से ईट बजा देने और गोंडवाना की अस्मिता जनजाति के अस्तित्व को बचाने का हर संभव प्रयास करने का देश की खातिर महाराजा शंकरशाह व युवराज रघुनाथशाह की तरह अपने प्राणों को न्यौछावर कर देने का संकल्प लिया । 

शंकरशाह रघुनाथशाह की शाहिद दिन

भारत के इतिहास में यह 18 सिंतबर 1857 का दिन गोंडवाना के महान शहीदों के नाम से अमर हो गया । पिता व पुत्र की इस तरह अपने देश संस्कृति व अस्मिता की
रक्षा के लिए बलिदान हो जाने का प्रथम मामला है । पिता पुत्र की शहादत की कहानी वास्तव में बेहद गौरवपूर्ण व प्रेरणादायी है । इसी गौरव की वजह से आज भी गोंड की छाती तन सी जाती है । गोंड जन अपने इन बलिदानों का जिक्र जब जब करते हैं तो उनका गर्व सातवें आसमान पर पहुंच जाता है । भला क्यों नही महान शहीद शंकरशाह रघुनाथशाह का राष्ट्र के प्रति त्याग ही अद्भुत और गौरवशाली है । 

बिखर चुके सैनिकों को एक बार फिर एकत्रित किया ।

राजा शंकरशाह और रघुनाथशाह की शहादत के बाद महारानी फुलकुंवर ने जो संकल्प लिया था उसे पूरा करने के लिए अपने हताश और बिखर चुके सैनिकों को एक बार फिर एकत्रित किया । कुछ ही दिनों में महारानी अपने पति व पुत्र की हत्या करने वालों को खत्म करके राज्य का बदला लेने के अभियान में जुट गई । मण्डला की धरती से उन्होंने काम करना शुरु किया और रामगढ़ तथा डिंडोरी के सभी सरकारी कर्मचारियों को बाहर कर दिया महारानी ने अंग्रेजों पर योजनाबद्ध तरीके से आक्रमण करती रही और अंग्रेजों पर योजनाबद्ध तरीके से आक्रमण करती रही और अंग्रेजों को नुकसान पहुंचाकर उन्हें दहशत डालती रही । अंत में एक बार अंग्रेजों की भारी सेना से आमना सामना हो गया । अंग्रेजों की भारी सेना आधुनिक बंदूकों से लैस थे । कुछ देर की भिंडत मे महारानी के सैनिक हताहत होने लगे । महारानी अंग्रेजों की पकड़ में आने वाली थी । उनके भागने का कोई रास्ता नहीं था अत : महारानी फुलकुंवर ने अपने आपको अंग्रेजों के हाथों पकड़ने में अनादर महसूस किया । वे चाहती थी कि अंग्रेजों के हाथों जिंदा ना पकड़ी जांए । 

महारानी फुलकुंवर आत्मस्वाभिमान को बचाया

अंग्रेज सैनिक महारानी को कैद करने काफी तेजी से करीब आ रही थी इसी बीच महारानी ने अपने आत्मस्वाभिमान को बचाने अपनी कटार पर अपनी ही पेट में उतार दिया
और वह वहीं पर वीरगति को प्राप्त हो गई । इसे देखकर अंग्रेज कमांडर व अंग्रेजगण आश्चर्यचकित रह गये । मूल धारा के साहित्य में गोंडवाना के इन वीरों की बलिदानी की गाथाएं नहीं लिखी गई यह सरासर पक्षपातपूर्ण है । हम अपने साहित्य में अपने इस महान पूर्वजों की अमर प्रेरणा दाई कथाओं को स्थान देकर अपने आने वाली नई पीढ़ी को अपना इतिहास बताते रहेंगे । गोंडवाना के प्रत्येक का गोंड मूलनिवासी भाई बहन अपने इस महान कुल गौरव को सदा सम्मान देते हुए उनसे प्रेरणा लेते रहें यही हम सब का कर्तव्य है ।

🔻अमर हो शंकरशाह जी , और कुंवर शहीद रघुनाथ । सारा गोंडवाना उत्सर्ग देख , अपना झुका रहा है माथा । इन वीरों के उत्सर्ग की गाथा , हम न भूल पायेंगे । अठारह सितंबर में उनका , शौर्य प्रतिवर्ष मनायेंगे । 🔻


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