रानी दुर्गावती मडावी का जीवन परिचय Rani Durgavati Madavi 2021


*रानी दुर्गावती मडावी का जीवन परिचय*  Rani Durgavati Madavi 2021

Rani Durga Vati Madavi

 रानी दुर्गावती मडावी का जीवन परिचय 

इतिहास साक्षी है कि गोंडवाना की भूमि वीर माताओं की बलिदान तथा आदर्श नारियों की भूमि रही है ।
ऐसे ही एक महान साहस की प्रतिमूर्ती , स्वामिनों और मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए कुबीन होनेवाली रानी दुर्गावती मडावी थी .
  भारत के इतिहास में गोंडराजो का एक अलग ही इतिहास रहा है जिनके शौर्य का लोहा पूरा भारतवर्ष मानता था । गोंडराजे अपनी मातृभूमि के लिए जान देने के तत्पर रहते थे । इन्हीं गोंडराजो में से एक रानी भी हुई थी , जिसके आगमन से मुगल तक काँप गए थे । वैसे गोंडराजो में महिलाओं को महल से बाहर आने की अनुमति नहीं होती थी । लेकिन रानी दुर्गावती मडावी ने गोंडराजो की इस प्रथा को तोडते हुए बहादुरी के साथ रणभूमि में युद्ध किया था । अन्य गोंडराजो की तरह रानी दुर्गावती मडावी ने भी दुश्मन के सामने कभी घुटने नहीं टेके थे । रानी दुर्गावती मडावी ना केवल एक वीर योद्धा थी बल्कि एक कुशल शासक भी थी जिसके अपने शासनकाल में विश्व प्रसिद्ध इमारतों खुराहो और कलिंजर का किला बनवाया था । अगर हम भारत की महान और वीर औरतों की बात करें तो रानी लक्ष्मीबाई की तरह रानी दुर्गावती मडावी का नाम भी स्वर्ण अक्षरों में गोंडराजाओ में लिखा जाता है । 

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रानी दुर्गावती मडावी का जन्म

रानी दुर्गावती मडावी का जन्म ५ अक्टूबर (१५२४) में वर्तमान मध्यप्रदेश में हुआ था । जिसे कभी गोंडवाना कहते थे । गोंडवाना में गोंड लोगों की ज्यादा बस्ती थी । और वही यहाँ के शासक थे । यहाँ के महोबा राज्य के चंदेलवंशीय राजा पृथ्वीसिंह के यहाँ उनका जन्म हुआ । रानी दुर्गावती मडावी और उनकी सहेली का नाम रायचेरी था । रानी दुर्गावती मडावी का लालन - पालन उनके माता - पिता ने बड़े ही लाड - प्यार और राजकुमारी की तरा किया । बचपन से उनको अस्त्रों - शस्त्रों की शिक्षा दी गयी । तलवारबाजी , धनुर्विद्या  की शिक्षा दी गयी । रानी दुर्गा वती मडावी , सरवन नाम के सफेद हाथी की सवारी करती थी , राजकुमारी दुर्गा वती मडावी अत्यंत सुदर और गुणवंती थी । चिते की शिकार करणे मे इनको विशेष रुची थी। शिकार करने में अद्भुत पराक्रम दिखाती थी ।    सोलह वर्ष की आयु में इनकी सुदंरता तथा पराक्रम की ख्याती चारों और फैलने लगी थी । महोबा की दक्षिण सिमांत पर ही एक प्रसिध्द गोंडवाना राज्य था । वहाँ के उदयमान गोंड राजवंश के प्रतापी शासक महाराजा संग्रामशाह के बडे पुत्र राजकुमार दलपतशाह भी रूपवान , बलवान , गुणवान तथा वीर पुरूष थे । जिनकी विरता की बात राजकुमारी दुर्गावती मडावी भी जानती थी । राजकुमार दलपतशाह को मन ही मन चाहने लगी थी । राजा शालीवाहन को राजकुमारी दुर्गावती मडावी की शादी कि चिंता सताने लगी थी । रानी दुर्गावती मडावी की सहेली रायजेचरी थी जिसके नामपर दुर्गावतीने तालाब खुदवाया था । इधर राजकुमार दलपतशाह भी राजकुमारी दुर्गावती मडावी की सुंदरता और विरता से परिचित थे ।

दलपतशाह के लिए एक संदेश

 एक दिन राजकुमारी दुर्गावतीने राजकुमार दलपतशाह के लिए एक संदेश भिजवाया और योजना बनायी । योजना के अनुसार १५४२ के संवत पंचमी के दिन राजकुमारी दुर्गावती मडावी कुलदेव का पुजा करने के लिए गई । उसी समय राजकुमार दलतपशाह दुर्गावती को अपने घोडे पर बिठाकर महोबा से सिगोरगढ़ ले आए और उन्होंने गोंडी विवाह पद्धती से दुर्गावती से ब्याह रचाया और इस तरह राजकुमारी दुर्गावती महाराज संग्रामशाह की पुत्रवधु स्विकारी गई । चंदेलवंश और गोंडराज्यवंश एक दुसरे के नजदीक आ गए । जिससे इनकी शक्ति और बढ़ गई । कालिजर पर आक्रमण के समय दलपतशाह चंदेलो की एक सहायता के कारण दिल्ली सुल्तान शेरशाह सूरी को मूंह की खानी पड़ी और जान भी गवानी पड़ी । 

गोंडवाना में हर्षोल्लास छाया हुआ था

गोंडवाना में हर्षोल्लास छाया हुआ था । कितू यह आनंद अधिक दिनों तक नहीं रह पाया । दलपतशाह के पिता महाराज संग्रामशाह का देहात इ.स. १५४३ में हुआ । ये बहुत पराक्रमी होकर तंत्रविद्या के ज्ञात थे । इनका बनाया बाजना मठ जबलपूर में आज भी विद्यमान है । इनकी मृत्यु सिगोरगढ़ के किले में हुई । महाराज संग्रामशाह के मृत्यु के पश्चात राजगद्दी पर दलपतशाह बैठे । इ.स. १५४५ उन्हे पुत्ररत्न प्राप्त हुआ । जिसका नाम वीरनारायण सिंह रखा गया । सुखपुर्वक दिन व्यतीत होने लगे । लगभग   १८४८-१८४९  के दरम्यान दलपतशाह के असाध्य बिमारी से निधन हुआ । तब विरनारायण( ४ ,५ )साल के थे । । उस समय रानी दुर्गावती ने बहुत धीरज से काम लिया तथा वीरनारायण सिंह को गद्दी पर बिठाकर स्वयं संरक्षिका के रूप में शासन की बागडोर संभाली । प्रशासन के संचालन में रानी के दो मंत्रियों आधारसिंह कायस्थ और मानसिंह ठाकूर ने खूब सहायता की ।

धीरे राज्य को घेरना आरंभ कर दिया 

सन (१५४९ से १५६४ )तक पंद्रह साल गोंडवाना राज्य की जनसमुदाय को सुख - समृद्धी , अमन चैन और साहस से भरकर उन्होंने अपना राजकाज संचालित किया । परंतु शत्रुओं ने एक विदुषी महिला शासीका के द्वारा समृध्दीपूर्ण एवं पारंगत राजसत्ता के संचालन को देखकर ग्लानी से धीरे - धीरे राज्य को घेरना आरंभ कर दिया था रानी की सेना भी तैयार थी । एक दिन मंत्री और सामतो को दरबार में बुलाया गया तथा प्रजा की भलाई की बात की गई और गोंडवाना राज्य की रक्षा के लिए सचेत किया तथा नए हथियारों का निर्माण कराया गया । धरोहर - बंदुके और छोटी तोपे गढवाई और गुप्तचरों का जाल फैला दिया गया । किसानो के हित में सिंचाई पीने का पानी तथा कुएँ , बावली , तालाब , नहर एवं धर्मशालाओं का निर्माण कराया गया । आधारताल तथा इनके अनेक प्रतीक मौजूद है । 

रानी दुर्गावती का शासन

रानी दुर्गावती का शासन लोक कल्याणकारी और लोकप्रिय था । इस शासन में भेड़ो तथा अन्य पशुओं के शासन में वृध्दी हुई । राजकोश भर गया था । रानी दुर्गावती मडावी धार्मिक एव दानशिल भी थी । उन्हीं दिनों में रानी ने अपनी राजधानी सिंगोरगढ़ के स्थान पर चौरागढ़ को स्थापित किया । सतपुडा पर्वत की श्रृंखला पर सुरक्षात्मक दृष्टि से यहां महत्वपूर्ण दुर्ग था । गोंडवाना पर अनेक शत्रुओं की बुरी नजर थी । शेरशाह सुरी की मृत्यू के बाद मालवा क्षेत्र में बाजबहादुर ने रानी दुर्गावती मडावी को कमजोर समझकर उस पर आक्रमण कर दिया । रानी सचेत थी ही । वह रणचंडी के समान अपनी सेना लेकर कूद पडी और करारा जवाब दिया तथा बाजबहादुर हारकर भाग खड़ा हुआ । रानी दुर्गावतीने दिखा दिया की औरतें कमजोर नहीं होती । रानी दुर्गा वती मडावी ने दुनिया को नारीशक्ति का बोध कराया । इससे पहले भी रानी ने अफगानियों पर सफलता प्राप्त की थी ।



Rani durga Vati Madavi Ka pratima

राणी का बलिदान #RaniDurgavatimadavi

जिस  दिन रानी ने अपना बलिदान दिया था वह दिन (24 Jun 1564) ईसवी  था ।अब प्रति वर्ष 24 Jun को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है और रानी दुर्गावती को याद किया जाता है!


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