कोयली कचार गढ़ का स्वरूप -फोरो फाटर धांनेगावा kupar lingo gufa

 भारत का सबसे बढा गुफा , kachargadh yatra

कोयली कचार गढ़ का इतिहास

कोयली कचार गढ़ कान्हा है

कोयली कचारगढ़ महाराष्ट्र राज्य के भंडारा जिले के सालेकसा तहसील में बम्बई हावड़ा रेल्वे लाईन पर जो पैसेंजर गाडियों का दरेकसा नामक रेल्वे स्थानक हैं उसके पश्चिम दिशा में तीन कि.मी. दूरीपर स्थित है ।

दरेकसा रेल्वे स्टेशन के पास ही धन्नेगाव नामक गांव है । वहां से कोयली कचार गढ़ दशष्टिगोचर होता है । यू आकार के पर्वत श्रेणी के मध्य में एक बहुत बड़ा प्राकृतिक गुफा है , जिसे काची कोपाड़ कहा जाता है ।

Table of content ⬇⬇

  • जंगो दाईना कुड़ो ( कुण्ड )
  • पहांदी पारी कुपार लिंगो ने कोणसे वृक्ष के नीचे बैठकर तप साधना की थी?
  • डॉ . चंद्रशेखर गुप्त का मानना है
  • कोयली कचार गढ़ गुफा का क्षेत्रफल

    गुफा का क्षेत्रफल करीब २०० X १०० का है ।और ऊंचाई ५० हैं ! जिसके भीतर करीब एक साथ चार हजार लोग बैठ सकते हैं । गुफां का प्रवेश द्वार दक्षिणाभिमुख है । उसके अंदर दाएं बाजूमे एक जलकुंड है , जहां बारह महिने पानी भरा रहता है । कुण्ड के उपरी भाग में करीब बीस फिट व्यासवाला एक झरोका है , जहां से सूरज के किरण दोपहर के वक्त कुण्ड के पानी में प्रवेश करते है । और ऐसी झरोके से गुफा के अंदर शुध्द हवा खेलते रहती है । कुण्ड के पास ही बहुत गहरा खंदक है , जिसकी गहराई के बारे में ऐसा बताया जाता है कि एक चारपाई की रस्सी भी उसके गहराई को नापने के लिए कम जाती है ।

    कोयली कचार गढ़ प्रवेश द्वार का आकार

    प्रवेश द्वार का आकार ३० x १५ का है । प्राचीन काल में वह बहुत ही छोटा था जहां से मात्र झुककर ही प्रवेश किया जाता था । किन्तु कली कंकाली के बच्चों को मुक्त करते समय उसे खोदा गया और उसका आकार थोड़ा बड़ा हो गया । तत्पश्चात विगत हजारों वर्षों से हवा , पानी और धूप के प्रभाव से भूस्खलन होकर वह बड़ा हो गया है । उस गुफा में किसी को भी बंद कर ऊपर के झरोके से खाने पीने के चीजों की पूर्ति की जाय तो कोई भी वहां अच्छी तरह कई दिनों तक जिन्दा रह सकता है ।

    गुफां के बाहर नीचले भाग में एक झरना बहते रहता है । उस झरना के पानी की वजह से धन्नेगाव निवासियों को आज तक कभी पानी का अकाल महसूस नहीं हुआ और न होता है । गुफा के सामने कचार गढ़ पर्वत का ऊंचा शिखर है , उसे रानीगढ़ कहा जाता है । गुफां के पश्चिम पर्वतीय श्रेणी में एक बाबा कुटी है , जहां पहांदी पारी कुपार लिंगो ने कली कंकाली के बच्चों को मुक्त करते समय अपना ठीया बनाया था । आज उसे बाबा कुटी कहा जाता है । दोनों पर्वत श्रेणियों के मध्य में कली कंकाली दाई का शक्ति स्थल है , जिसे कलिया कुवारी देवी का ठाना कहा जाता है ।


    जंगो दाईना कुड़ो ( कुण्ड )

    कचार गढ़ के दक्षिण दिशा में पांच कि.मी. दूरी पर जंगो कुड़ो है । वहां एक गोलाकार कुण्ड है , जो हर वक्त पानी से भरा रहता है । उस कुण्ड को जंगो दाईना कुड़ो कहा जाता है , जंगो कुड़ो के दक्षिण में करीब आठ कि.मी. दूरी पर मानागढ़ के पास कुपार मट्टा है , रायताड जंगो

    पहांदी पारी कुपार लिंगो ने कोणसे वृक्ष के नीचे बैठकर तप साधना की थी?

    मानागढ़ के पास कुपार मट्टा है ,उसी पर्वत के पास काट सावरी ( सेमल ) वृक्ष के नीचे बैठकर पहांदी पारी कुपार लिंगोने तप साधना की थी , इसलिए उस पर्वत को गोंडी में कुपार मेट्टा कहा जाता है ।
    कोयली कचारगढ़ पर्वतीय मालाओं के परिक्षेत्र में प्राचीन काल में धन्नेगांव , पारी पटोर , बिजली पूरा आदि प्राचीन स्थल हैं , जो वर्तमान में धन्नेगाव , पिपरीया , बिजलीपूरा इन नामों से जाने हैं ।
    कचार गढ़ के पश्चिम दिशा में कीकाली मूरीदण्ड नामक ग्राम है , जहां कली कंकाली के बच्चों के साथ संभू गवरा की मूलाकात हुई थी और गवरा को उनकी पकड़ से मुक्त कर उन्हें संभूने वहीं पर बारह वर्षों के बंदीवास का दण्ड सुनाया था । इसलिए उस स्थल को कीकाली मूरी दण्ड अर्थात् कली कंकाली के बच्चों का दण्ड स्थल कहा जाता है ।काली कांकली का सुमरण

    डॉ . चंद्रशेखर गुप्त का मानना है

    कचार गढ़ गुफा के परिक्षेत्र का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के द्वारा उत्खनन करने पर वहां पाषाणयुग से संबंधित प्रमाण प्राप्त हो चुके हैं , जिससे वहां अनादि काल से मानव समुदाय का निवास था यह सिध्द हो चुका है । पाषाण युग , मध्य पाषाण युग और नव पाषाण युग में प्रयोग किए जानेवाले औजार वहां प्राप्त हुए हैं , जो इस बात के प्रमाण है कि कोया वंशीय गोंड समुदाय का वह अनादि काल से धार्मिक स्थल रहा है , ऐसा पूरातत्ववेता डॉ . चंद्रशेखर गुप्त का मानना है । इस पर से जब संभू ने कली कंकाली के बच्चों को कोयली कचार गुफा में बंद किया था वह काल अवश्य पाषाण युगीन था । पारी पहांदी कुपार लिंगो ने सर्वकल्याण का मार्गदर्शन किया है ।



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