गोंडी पुनेम का सर्वकल्याणवादी दर्शन
गोंडी पुनेम की संस्थापना के पूर्व काल में कोयमूरी दीप के कोया वंशीय गण्डजीवों के गोंदोला ( समुदाय ) में सर्वमान्य रूप से प्रस्थापित किये गये समुदायिक नियमावली नहीं थी । सामुदायिक जीवन से संबंधित किसी भी प्रकार के नैतिक मूल्य नहीं थे । हर एक व्यक्ति ( गण्डजीव ) स्वयं को स्वयंपूर्ण केंद्र मानता था । वह स्वयंपूर्ण और स्वतंत्र होने पर भी इस जीव जगत में अकेला नहीं था । उसके समान अपने आपको स्वयंपूर्ण केंद्र मानने वाले अनेक गण्डजीव उसके अगल बगल या अड़ोस पड़ोस में थे । जितने गण्डजीव उतने विचार होने से उनमें हर वक्त वाद – विवाद , संघर्ष एवं लढ़ाई झगडे हुवा करते थे । जिसकी वजह से उनके जीवन में हर वक्त खतरा बना रहता था ।
पहांदी कुपार लिंगो ने कोया वंशीय समुदाय को बौद्धिक ज्ञान दिया !
गोंडी पुनेम मुठवापोय पारी पहांदी कुपार लिंगो को जब कोया वंशीय गण्डजीवों के समुदाय में दुःखमय , अशांन्तिपूर्ण एवं असंतोष का वातावरण फैला हुआ दिखाई दिया तब उसने अपने साक्षात्कारित बौद्धिक ज्ञान से कोया वंशीय समुदाय ( गोंदोला ) के गण्डजीवों को जीव जगत का यथार्थ रूप क्या है , उसका सामुदायिक रूप से सर्वकल्याण कैसे साध्य किया जा सकता है , यह समझाकर बताया और सगायुक्त सामुदायिक व्यवस्था प्रस्थापित कर संपूर्ण समुदाय को सुख शान्तिपूर्ण जीवन जीने का सर्वकल्याणवादी मार्ग बताया । इस संबंध में जानकारी निम्न लिंगोना सर्री सैयला पाटा से प्राप्त होती है ।
लिंगोना सर्री सैयला पाटा
रे रेना ss रे रेना रेना , रेना रे रेना रेना ।
ताकीटे लिंगोना सर्री , हिदे गोंडी पुनेम मावा ॥
सिरडीता जीवांग पुंदाना ।
सगा बिडारतुने मांडीना ।।
सबेता सेवा कियाना , हिदे गोंडी पुनेम मावा ।।
सबेतुन आपलो इंदाना ।
सबेता संगने मदाना ।।
सगा ने गतुने पुदाना , हिदे गोंडी पुनेम मावा ।।
सच्चो वन्कीना वेहताना ।
सच्चो केंजीना तत्वाना ।।
मतिते सुयमांड इराना , हिदे गोंडी पुनेम मावा ।।
सोता वेळची आयाना ।
सबेतुन वेळची सियाना ।
मोदूरता मोद मांजीना , हिदे गोंडी पुनेम मावा ।।
यायाल बाबोना सेवाते ।
सगा बिडार गोंदोलाते ।।
रमे मासी के मंदाना , हिदे गोंडी पुनेम मावा ।।
लिंगोना सर्री पाठा (गीत) का मतलब
उक्त लिंगोना सर्री सैला गीत का यह आसय है
कि हमें लिंगो के मार्ग से चलना है जो हमारा सत्य मार्ग है । प्रकृति के सभी गण्डजीवों के अस्तित्व को मान्य कर सगायुक्त समुदाय में प्रेम भाव से रहना और सभी की सेवा करना ही हमारा गोंडी पुनेम है । सभी को अपना मानकर उनके सहवास में रहना सगा समुदाय के मूल्यों का पालन करना ही हमारा गोंडी पुनेम हैं । सत्यवाणी का प्रयोग कर सत्य वचनों को श्रवण करना तथा सत्य दष्टिकोण मनमें रखकर सभी की सेवा करना ही हमारा गोंडी पुनेम है ।
कि हमें लिंगो के मार्ग से चलना है जो हमारा सत्य मार्ग है । प्रकृति के सभी गण्डजीवों के अस्तित्व को मान्य कर सगायुक्त समुदाय में प्रेम भाव से रहना और सभी की सेवा करना ही हमारा गोंडी पुनेम है । सभी को अपना मानकर उनके सहवास में रहना सगा समुदाय के मूल्यों का पालन करना ही हमारा गोंडी पुनेम हैं । सत्यवाणी का प्रयोग कर सत्य वचनों को श्रवण करना तथा सत्य दष्टिकोण मनमें रखकर सभी की सेवा करना ही हमारा गोंडी पुनेम है ।
स्वयं – बौध्दिक ज्ञानी बनकर अपने ज्ञान प्रकाश से सभी को प्रकाशमान करना यही हमारा गोंडी पुनेम है । माता पिता की सेवा करके सगा समुदाय के घटक के रूप में अपना जीवन जीना यही हमारा गोंडी पुनेम हैं ।
सल्लां गांगरा शक्ति गीत (पाटा)
उक्त गीत के सार से भी गोंडी पुनेम के मूल्य किस प्रकार सगा गण्डजीवों के लिए कल्याणकारी हैं इसकी जानकारी मिलती है । पारी कुपार लिंगो ने यह प्रतिपादन किया है कि व्यक्ति स्वयंपूर्ण नहीं है । उसे जो व्यक्तित्व के गुण संस्कार प्राप्त होते हैं , वे समुदाय में ही प्राप्त हो सकते हैं । इसिलए समुदाय का कल्याण ही उसके घटक का कल्याण है ।
जैसे –
सिंगार सिरडीता सुक्ति परसापेनता ।
सल्लां गांगरा पूना ऊना सत्वांता ।।
मदूरवाल मानवाना जीवा पुटायता ।
मान बिडारते मानवान मान्सत पुटीता ।।
अर्थात व्यक्ति यह प्रकृति के सल्लां गांगरा शक्तियों के क्रिया प्रक्रिया से प्रादूर्भवित हुआ एक समुदाय प्रिय एवं बुध्दिमान प्राणि है । उसे प्राप्त बुद्धि प्रकृति की देन है । परंतु उसे व्यक्तित्त्व प्राप्त करने के लिए सामुदायिक जीवन की आवश्यकता होती है । व्यक्ति का व्यक्तिमत्व बचपन से ही विकसित होता है । उसके लिए पारी कुपार लिंगो ने सगायुक्त समुदायिक व्यवस्था प्रस्थापित की और बचपन से ही गण्डजीव का व्यक्तित्व बनाने के लिए हर गांव में गोटुल नामक शिक्षा संस्था प्रस्थापित करने का मार्गदर्शन किया । उसका बौध्दिक , मानसिक और शारीरिक विकास साध्य कर उसे नैतिक , सामुदायिक और धार्मिक मूल्यों का परिपाठ पढ़ाकर एक आदर्श नागरिक बनाना , यही एकमात्र लक्ष गोटुल संस्था स्थापित करने के पीछे पारी कुपार लिंगो का था । उसीतरह सगायुक्त सामुदायिक व्यवस्था व्यक्ति के हितों के लिए प्रस्थापित की गई है , जिसके बिना उसका जीवन पशुतुल्य हो सकता है ।
- एक से बारह गोंडी सगा गोत्र की पुरी जाणकारी
- गोंडी पुनेम ध्वज दर्शन गोंडवाणा की सप्तरंगी झेंडा
- गोंडी नृत्य वादयों के प्रकार
- गोंडी पुणेम का प्रचार
मून्दमुन्शूल मार्ग से चलकर स्वयं कल्याण साध्य करता है ।
गण्डजीवों को आदर्श तथा श्रेष्ठ जीवन की प्राप्ति के लिये आदर्श समाज व्यवस्था अनिवार्य है ऐसा मानकर पारी कुपार लिंगो ने प्रकृति के नियमों पर आधारित सगायुक्त समुदायिक व्यवस्था बनाई है । इस आदर्श समुदायिक जीवन से गण्डजीव सद्गुणों से परिपूर्ण , सदाचारी एवं सेवाभावी हो जाता है ।
व्यक्ति को व्यक्ति का सुख साध्य करने के लिए भी व्यक्तिवादी रहा नहीं जा सकता । सगा समुदाय के बिना उसे इष्ट लगनेवाला सुख भी प्राप्त नहीं हो सकता । उसीतरह उसके विकास के लिए भी समुदाय की आवश्यकता होती है । उसका व्यक्तिमत्व समुदायिक जीवन में ही ढाला जा सकता है । इसलिए गण्डजीवों ने समुदाय प्रिय होना चाहिए , उसका लक्ष ही समुदाय का कल्याण होना चाहिए , ऐसा पारी पहांदी कुपार लिंगो ने मार्गदर्शन किया है । समुदाय यह कोई वस्तु नहीं हैं , वह एक संस्था है । समुदाय का विकास याने उसके घटकों का विकास तथा समुदाय का कल्याण याने उसके उन घटकों का कल्याण , जिससे समाज बनता है । समुदाय का विकास तभी साध्य हो सकता हैं जब वह उचित मूल्यों से परिपूर्ण हो । इसलिए पारी कुपार लिंगो ने नीतिमूल्यों से परिपूर्ण सगा समुदायिक संरचना प्रस्थापित की है ।
सगा समुदाय की सेवा करो
सगा समुदाय के मूल्यों के अनुसार अपना व्यवहार करने से समुदाय का हर एक व्यक्ति सुखमय एवं शांतिपूर्ण जीवन उपभोग कर सकता है । क्योंकि सगा समुदाय के गण्डजीवों का हित साध्य करना ही स्वयं का हित साध्य करना है ।
तमवेळचीताल रेक्वेळची किम्ट !
अर्थात् स्वयं प्रकाश से औरों को प्रकाशित करो ,
सगा तम्मू आसी सगा पारी बिम्ट !
अर्थात् सगा सदस्य बनकर सगा सम्बन्ध प्रस्थापित करो ,
सेवाकाया आसी सगा सेवा किम्ट !
अर्थात् स्वयं सेवक बनकर सगा समुदाय की सेवा करो ,
ऐसा पारी पहांदी कुपार लिंगोने प्रतिपादन कर सर्वकल्याण का मार्गदर्शन किया है ।
इसके अतिरिक्त हर एक गण्डजीव से दूसरे गण्डजीवों को दुःख न पहूंचे ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए । गण्डजीवों के समुदाय का अस्तित्व को बाधक होनेवाले जीव सत्वों को बचाना भी नहीं चाहिए तथा उसके अस्तित्व के लिए स्वयं की कुर्बाणी देनेवाले जीव सत्त्वों को मारना भी नहीं चाहिए ऐसे प्रकृति के मानदण्डों पर आधारित अहिन्सा का सिध्दांत भी पारी कुपार लिंगोने प्रतिपादन किया है । इसतरह पारी पहांदी कुपार लिंगो का गोंडी पुनेम दर्शन किस प्रकार सर्वकल्याणवादी है , इसकी पुष्टि होती है ।
Go home and Read the Gondwana history
1 thought on “पारी पहांदी कुपार लिंगो ने सर्वकल्याण का मार्गदर्शन किया है । kupar lingo”