गोंडी पुनेम का सर्वसाधारण नीतिबोध

गोंडी पुनेम का प्रचार एवं प्रसार करने का मार्गदर्शन किया।

 
गोंडी पुनेम मुठवा पारी कुपार लिंगो ने अपने सगा शिष्यों को गोंडी पुनेम का पाठ पढ़ाकर उन्हें उसका प्रचार एवं प्रसार करने का मार्गदर्शन किया । उन्होंने गण्डोदीप के चारों संभागों में निवास करनेवाले गण्डजीवों में कोया पुनेम का प्रचार एवं प्रसार किया और उन्हें सगा सामुदायिक व्यवस्था में संरचित कर हर नार , गुडा , पल्ली , कस्सा और गढ़ कोट में गोंडी पुनेम दर्शन का पाठ पढ़ाने हेतु गोटुल , दुमकुरीया , मोरूंग , गीतीहोरा , आदि संस्कार केंद्र स्थापित किये। 

पारी कुपार लिंगो के गोंडी पुनेम दर्शन की जानकारी

गोंडी पुनेम दर्शन की जानकारी आज भलें ही हमारे सामने लिपिबद्ध नहीं है , फिर भी व्यवहारिक तौर पर वह आज भी कोया वंशीय गण्डजीवों के गण्डगोंदोला में विद्यमान है । सिंधु घाटि के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से यह सिद्ध हो जाता है कि प्राचीन काल में वह अवश्य लिपिबद्ध रही होगी , किन्तु विदेशी आक्रमण से वह धरती के गर्भ में समा चुकी है , उसका संशोध न आज अनिवार्य हो गया है । आज भी अपने पुनेम मुठवा के आदर्शों का मनन चिंतन कर वे गोटुलों के माध्यम से नई पीढ़ी को संक्रमित करते हैं । उनके सामाजिक और धार्मिक रीति रिवाजों के रूप में आज भी लिंगो दर्शन प्रचलित है । 

  1. कुपार लिंगो ने सर्वकल्यान का मार्गदर्शन किया
  2. पहांदी कुपार लिंगो का जन्म कैसे हुआ 
  3. कुपार लिंगो और रायताड जंगो 
  4. कोयली कचाड़ लोहगढ़ पर्वत की गुफा में बारह वर्ष की कैद

 मून्दशूल मार्ग की प्राप्ती


           लिंगो ने कोया वंशीय गण्डगोंदोला के सगा जनों का कल्याण साध्य करने के लिये मुरक्का सर्री ( मून्दशूल मार्ग ) बताया है , जिसे त्रैगुण्य शूल या त्रिशूल मार्ग भी कहा जाता है । मुरक्का सर्री की जानकारी सिंधु सभ्यता के मुहरों में अंकित पाठों से भी प्राप्त होती है ।
मुहर क्रमांक H - 306 , H - 132 , H - 147 और M - 453 में 卅卅   ऐसा पाठ अंकित है , जिसे गोंडी भाषा के माध्यम से दायें से बायें मुरक्का सर्री आन्द ऐसा पढ़ा जाता है , जिसका अर्थ तीन शूल मार्ग है ऐसा होता है । इस मुरक्का सर्री को प्रतिपादित करनेवाले गुरू मुखिया की जानकारी मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर क्र . M - 1181 से प्राप्त होती है , जिसमें 卅  प्राक् ऐसा पाठ सिन्धू चित्रलिपि में अंकित है , जिसे द्रवीडियन गोंडी भाषा में दायें से बायें सुक्कूम कालता पहांदी मुठवा पोयना सर्री आंद  ऐसा पढ़ा जाता है , जिसका अर्थ  सुखमय जीवन का पहांदी गुरूमुखिया का मार्ग है  ऐसा होता है ।

सुखमय जीवन बोध


सुखमय जीवन का सर्वसाधारण नीति बोध जो उनके पुनेम मुठवा पोय पहांदी पारी कुपार लिंगो ने दी है वह आज भी कोया वंशीय गोंड समुदाय के गण्डगोंदोला के गण्डजीवों में विद्यमान है । 
     जैसे ..
     सगा गण्डजीवों की सेवा करना चाहिये , 
     सगा भुमका या मुठवा की सेवा करनी चाहिए , 
     सगा समुदाय के सियान गणों की सेवा करनी चाहिए,
     पुयमोद का अध्ययन करना चाहिए ,
      सगा समुदाय के वृद्ध गण्डजीवों की 
      सेवा करनीचाहिए , 
      सगा समुदाय के गण्डजीवों का कल्याण साध्य हो ऐसे ही वातावरण में ग्राम या कस्बा बनाकर रहना चाहिए,
सगा गण्डजीवों के साथ प्रेमभाव से रहना चाहिए ,
सगा गण्डजीवों का अहित न हो ऐसे ही वाणी का प्रयोग करना चाहिए , 
सगा गण्डजीवों को हितकारक हो ऐसे कर्म अपने कर्मेंद्रियों से करना चाहिए , 
दाऊ दाई ( बाबो यायाल ) की सेवा करनी चाहिए ,
दीन दुखियों की मदत करनी चाहिए , 
सगा गण्डगोंदोला ( समुदाय ) को घातक हो ऐसे कर्मों से सदा परे रहना चाहिए , 
हर पल सगा गण्डजीवों पर उपकार करते रहना चाहिए , सगा गण्डजीवों के साथ प्रेमभाव , बंधुभाव एवं आदरभाव से रहना चाहिए , 
सगा गण्डजीवों के कल्याण में ही स्वयं का कल्याण नीहित होता है इसलिये अपनी बुद्धि , वाणी , कृति और मन से सगा कल्याण ही साध्य करते रहना चाहिए , 
मुश्किल से मुश्किल समस्याओं का धीरज के साथ मुकाबला करना चाहिए तथा सगा गण्डजीवों के कल्याण की भावना सदा मनमें संजोये रखना चाहिए । 
इस तरह पहांदी पारी कुपार लिंगो के गोंडी पुनेम दर्शन में व्यक्ति विशेष के बजाय सगा समुदाय के कल्याण को ही महत्त्वपूर्ण माना गया है ।


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