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गोंडी आठ से बारह सगा के गोत्र नाम gondi gotra ,list of gotras

Table of contant

१. अर्वेन ( आठदेव ) सगा के गोत्र नाम 

अंगाम  –  कंगला  –  उंदाम  –  कसेंडी  –  दुगाम
उकाम  –  तोराटी  –  इलाम  –  दुर्वाल  –  दरावी 
 
ये सगा गोत्र धारक जंगो रायतार के उंदीवेन , रंडवेन , और मूंदवेन सगाओं के भुमका हैं , जो नारायण सूर सगा से संबंधित है ।
 

२. नर्वेन ( नौ देव ) सगा के गोत्र नाम 

अडाम  –  तराटी  –  सुर्पाडा  –  नटोपा  –  चराटी
इलांडी  – कुचाम – कोवा      –  परसो   – डेगामी 
 
   ये सगा गोत्र धारक कुपार लिंगो के चार देव सगा ( नाल्वेन सगा ) गोत्र धारक सगाजनों के भुमका हैं , जो कोलासूर सगा से संबंधित हैं ।
 
 

३. पदवेन ( दस देव ) सगा के गोत्र नाम 

तुम्मा   –  मंडारी  –  बुदाम  –  दुरवा  –  कड़ता 
गोरंगा  –  पुरका  –  मुरापा  – पुंडराम – कीरंगाम 
 
   ये सगा गोत्र धारक कुपार लिंगो के पांच देव ( सैवेन ) सगा गोत्र धारक सगाजनों के भुमका है , जो हीराजोती सगा से संबंधित हैं ।
 
 

४. पावूंदवेन ( ग्यारह देव ) सगा के गोत्र नाम 

कलंगा  –  गोटा  –  वेरमा   –  धुरुवा  –  पटावी 
कटींगा  –  नेटी   –  मुरावी  –  खंडाता – पंडराम 
 
    ये सगा गोत्र धारक कुपार लिंगो के छह देव ( सार्वेन ) सगा गोत्र धारक सगाजनों के भुमका हैं , जो मान्को सुंगाल सगा से संबंधित है ।
 

५. पार्रडवेन ( बारह देव ) सगा के गोत्र नाम 

उईका  –  वेलादी  –  कोरचा  –  सोरी  –  तोरा 
दडांजा –  कंगाम  –  सल्लाम – मरकाम – नेताम 
 
     ये सगा गोत्र धारक कुपार लिंगो के सात देव ( येर्वेन ) सगा गोत्र धारक सगाजनों के भुमका हैं , जो तुरपोराय सगा से संबंधित है ।
 
 

 तीसरे गोंडी पुनेम मुठवा रायलिंगो 

            रुपोलंग पहांदी पारी कुपार लिंगो के शिष्यों द्वारा सम्पूर्ण कोयमूरी दीप के कोया वंशीय गण्डजीवों के समुदाय को उक्त सगा पारी ( सगा गोत्र ) शाखाओं में संरचित करने के पश्चात कालांतर में तीसरे गोंडी पुनेम मुठवा रायलिंगो के कार्यकाल में उक्त पांच भुमका सगाओं के जो गोंडी गोंदोला ( गोडी समुदाय ) के गण्डजीव थे उन्हें उनके विषम सगाओं में विलीन किया गया और ऐसा नियम बनाया गया कि सम सगा के गोत्र धारक गण्डजीवों के भुमका का कार्य विषम
सगा गोत्र धारक करेंगे और विषम सगा गोत्र धारकों के भुमका का कार्य सम सगा गोत्र धारक आपस में करेंगे । इसलिए आठ , नौ , दस , ग्यारह और बारह सगा देव गोत्रजों की व्यवस्था आज विद्यमान नहीं है ।
उसी तरह प्राचीन काल में अर्थात् गोंडी पुनेम मुठवा रायलिंगो के कार्यकाल में रायतार जंगो और रुपोलग पहादी पारी कुपार लिंगो के सगाओं में आपसी सगा पारी संबंध प्रस्थापित करने में जब दिक्कत होने लगी तब सभी गोंडी पुनेम सगा गण्डजीवों की मांदी आयोजित कर तत्कालीन पुनेम मुठवा राय लिंगो के द्वारा जंगो रायतार दाई के उंदीवेन , रण्डवेन और मुंदवेन सगाओं को एक मात्र सार्वेन सगा गोत्र में विलीन किया गया । इसलिए जंगो रायतार दाई के तीन सगाओं के गोंडी गण्डजीव अस्तित्त्व में नहीं है । इस सगा समायोजन प्रक्रिया में शायद कुछ गण्डजीवों ने हिस्सा नहीं लिया होगा , या उस विलीनीकरण प्रक्रिया को उचित नहीं माना होगा और वे अपने प्राचीन संरचना में ही विभाजित रहे होंगे , इसलिए आज भी भंडारा , चंद्रपुर और अदिलाबाद में कहीं कहीं एक देव , दो देव और तीन देव सगा के गण्डजीव विद्यमान हैं । इसतरह रुपोलंग पहादी पारी कुपार लिंगो के कार्यकाल में जो कोया वंशीय गण्डजीवों का समुदाय कुल बारह सगाओं में विभाजित था , आज वह सात सगाओं में संरचित है ।

 

             सगा देवों की पहिचान और स्थापना 

     कोया वंशीय गोंड समुदाय के प्रत्येक सगा के परिवार में घर के भीतर एक  पेनकोली ( देवस्थल ) होता है । उनके देवस्थल में जिन देवों की पूजा की जाती है , वे सभी उनके पूर्वज हैं , जिन्होंने उनके गोंडी सगावेन गोंदोला की संरचना की और गोंडी पुनेम के रुप में जीवन मार्ग प्रदान किया है । उनके घरके भीतर के पेनठाना में हंडी के अंदर जो पेन रखे होते हैं उनमें संभूगवरा , लिंगो , पांच मुठवा , और सगादेवों के प्रतिक होते हैं । संभू गवरा , लिंगो और पांच मुठवा सभी सगाओं के पास होते हैं , परंतु सगा देवों की संख्या मात्र वह परिवार जिस सगा संख्या के शाखा से संबंधित होता है , उतने ही होते हैं । सगा देवों को गोंडी में चुडूर पेन ( नुरमल पेन ) अर्थात् नन्हें देव कहा जाता है । उनके भुमका जब देवों की पूजा करने हेतु उन्हें हंडी से बाहर निकाल कर पेन ठाना के गादी में विराजित करते हैं तब उनकी विराजमान होने की क्रमवार स्थिति इस प्रकार होती है ।

प्रथम पंक्ति में चावल के मूठ पर संभूगवरा के प्रतिक को रखा जाता हैं , क्योंकि उसके ही मार्ग दर्शन से गोंडी सगा देवों की मुक्ति रुपोलंग पहांदी पारी कुपार लिंगो ने की थी ।
दूसरे पंक्ति में चावल के पांच मूठ रखकर उन पर पहांदी पारी कुपार लिंगो के द्वारा कोया वंशीय गण्डजीवों को सगायुक्त शाखाओं में संरचित करने हेतु जिन पांच भुमकों की नियुक्ति की गई थी उनको नारायणसूर ( नारानपेन ) , कोलासूर ( कालापेन ) , हीराजोती ( जाखा राज ) , मान्को सुगाल ( माटयाल पेन ) और तुरपोय ( तलपार शक्ति पेन ) के रुप में विराजित किया जाता है ।
तीसरे पंक्ति में चावल के मूठ रखकर लिंगो चूड़ा को सर्वप्रथम और उसके बाद परिवार के सगा देव रखे जाते हैं । यदि वह परिवार एक देव सगा धारक है , तो एक प्रतिक , दो देव सगा का है तो दो प्रतिक ऐसे क्रम से रखे जाते हैं । इन्ही चुडूर पेन की संख्या से वह परिवार कितने देवों के सगा शाखा से संबंधित है , इसकी पहिचान होती है ।

लिंगो का चुड़ा इस बात का प्रतिक है कि उसने कोया वंशीय गण्डजीवों को एक गोंदोला ( समुदाय ) में अनुबंधित करने का कार्य किया है , इसलिए उसके नाम से एक गोल चुड़ा स्थापित किया जाता है जिसे सकरहाई याने संकलन कर्ता देव कहा जाता हैं ।
उक्त सभी देवों के प्रतिकों की निर्मिति एक विशेष विधि के साथ कुवारी लोहे से की जाती है , जिसे गोंड समुदाय के ओतारी या वतकारी किया करते हैं । नारायण पेन का प्रतिक मात्र शंख रुप में होता है ।
इसके अतिरिक्त प्रत्येक घर में धनबाई , धन ठाकुर , गाथा पीठ ( साना डुम्माल ) , दुर्गापाठ आदि देव स्थापित होते हैं , जिन्हें सुबह शाम भोजन ग्रहन करने के पूर्व छिटकी चढ़ाई जाती है । इसतरह गोंडी सगा देवों की संरचना से कोया वंशीय गण्डजीवों के सगावेनों की पहिचान होती है । 

  

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