भिमाल पेन के भाई बाहण के बारे मे /गोंड का पेन(देव ) की जाणकारी.(bhimal pen) igondi

भिमाल पेन उपासना कोया/गोंडवाणा cultur
Bhimal Pen

भिमाल पेन उपासना

भिमाल पेन उपासना कोया वंशीय गोंड समुदाय के गण्डजीव भिमाल पेन की उपासना चैत्र माह की पूर्णिमा को करते हैं । उस दिन सभी ग्रामवासी भिमाल पेन की ठाना में जाकर उसकी साफ सफाई करते हैं ।

About brother and sister of Bhimal Pen,

स्वच्छ जल से भिमाल पेन की मूर्ति को धोकर उसे सिंदूर से रंगाते हैं । उसके समक्ष सव्वा पायली जवारी रखकर उस पर कलश रखते हैं । जिसे घट स्थापना कहा जाता है । घट स्थापित करने का यह कार्यक्रम चैत्र पूर्णिमा को रात्रि के बारह बजे किया जाता है । दूसरे दिन भिमाल पेन की पूजा कर के घट को विसर्जित करते हैं । उस दिन गाव के सभी लोग अपने अपने घर से पूजा का सामान लेजाकर उसकी पूजा करते हैं । उसी तरह सभी मिलकर वर्गणी जमा करके बकरा लेकर भिमाल पेन को बली चढ़ाते हैं । उसका प्रसाद सभी को वितरीत किया जाता है । सभी भिमालपेन की ठाना में खाना पकाते हैं और नैवद्य चढ़ाकर शाम को खाना खाने के बाद घट विसर्जित करते हैं । भिमाल पेन का जो मुख्य ठाना पेन्क नदी किनारे सुयाल मेट्टा में है वहा सव्वा महिने तक घट प्रज्वलित रखा जाता है । जिसका दर्शन करने सभी लोग अपने सुविधा के अनुसार जाते हैं ।

कुवारा भिमाल पेन

kuvara bhimal pen की उपासना करने के पीछे कोया वशीय गोंड समुदाय के गण्डजीवों में उसकी ऐतिहासिक प्राचीन गाथा प्रचलित है । प्राचीन काल में भिमाल नामक एक ऐसा योग सिद्धि प्राप्त शूरवीर और बलशाली महापुरूष गोंड समुदाय के मड़ावी गोत्र में हुआ । उसका जन्म चैत्र पूर्णिमा के दिन हुआ था । वह मध्य प्रदेश के मैकल पर्वतीय मालाओं के तराई में स्थित बय्यर लांजी के निवासी भूरा भुमका और कोतमा दाई का पूत्र था ।

Bhima pen dolora
Bhima pen dolora

कोया वंशीय गोंड समुदाय के गण्डजीवों की सेवा करने हेतु उसने अपना घरद्वार त्याग दिया था । उसके छह भाई और पांच बहने थी । भिमाल पेन के भाई बाहण के बारे मे जाटबा , केशो , हिरबा , बाना , भाजी , मुकोशा और भिमा ऐसे सात भाईयों के नाम थे और पंडरी , पुंगार , मुंगूर , कुशार और दाई पाच बहनों के नाम थे । भिमाल पेन के इन सभी भाई बहनों ने कोया वशीय गोंडी गण्डजीवों की सेवा करने हेतु अपना सर्वस्व त्याग दिया । उनका सेवा कार्य आज भी चिरकालिक रूप से जिदा है । भिमाल पेन ने गांव गांव में जाकर कसरत रोन अर्थात् गोटुल रूपि व्यायाम शालाए स्थापित कर उसमें कोया वशीय गण्डजीवों को बड़गा , बिलाम्ब धनुष्य विद्या , मल्ल , मुष्टी , कुस्ती आदि हुनर सिखाने का कार्य किया । उसी तरह अपने तंदरी जोग शक्ति सभी के दुखों की जानकर उनकी मदत किया करता था । वह अपने योग शक्ति के बल पर मुसलधार वर्षा भी बरसाया करता था ,

God of gond

इसलिये उसे पानी का देवता भी कहा जाता है । जाटबा और हिरबा दोनों ताल तलय्या बांधने के कार्य में माहीर थे , केशो और बाना कृषि विद्या में निपून थे , भाजी और मुकोशा रास्ते बनाने के कार्य में कुशल थे । उसी तरह उसकी बहने पडरी और पुंगार सहकारीता के तत्व पर हर गांव में अनाज भडार बनाने का मार्ग दर्शन किया करती थी , मुगूर और कुशार ग्राम एव निवास बनाने के कार्य में मदत किया करती थी और शीतला या माता दाई बयगा अर्थात् वैध शास्त्र निपून थी । वह सभी ग्राम वासियों की सेवा औषधोपचार कर किया करती थी । ऐसा कहा जाता है कि भिमाल पेन के जमाने में इस गण्डोदीप के सभी कोया वंशीय जीवगण्ड अमन चयन से जिया करते थे । इसलिये उनकी उपासना आज भी की जाती है ।

Kuvara bhimal pen IGONDI.XYZ

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